Saturday, 21 March 2020

सांसों की लय

सीप की वेदना "सांसों की लय"

हृदय में लिये बैठी थी
एक आस का मोती,
सींचा अपने वजूद से,
दिन रात हिफाजत की
सागर की गहराईयों में,
जहाँ की नजरों से दूर,
हल्के-हल्के लहरों के
हिण्डोले में झूलाती,
"सांसो की लय पर"
मधुरम लोरी सुनाती,
पोषती रही सीप
अपने हृदी को प्यार से,
मोती धीरे-धीरे
शैशव से निकल
किशोर होता गया,
सीप से अमृत पान
करता रहा तृप्त भाव से,
अब यौवन मुखरित था
सौन्दर्य चरम पर था,
आभा ऐसी की जैसे
दूध में चंदन दिया घोल,
एक दिन सीप
एक खोजी के हाथ में
कुनमुना रही थी,
अपने और अपने अंदर के
अपूर्व को बचाने,
पर हार गई उसे
छेदन भेदन की पीडा मिली,
साथ छूटा प्रिय हृदी का ,
मोती खुश था बहुत खुश
जैसे कैद से आजाद,
जाने किस उच्चतम
शीर्ष की शोभा बनेगा,
उस के रूप पर
लोग होंगे मोहित,
प्रशंसा मिलेगी,
हर देखने वाले से ।
उधर सीपी बिखरी पड़ी थी
दो टुकड़ों में
कराहती सी रेत पर असंज्ञ सी,
अपना सब लुटा कर,
वेदना और भी बढ़ गई
जब जाते-जाते
मोती ने एक बार भी
उसको देखा तक नही,
बस अपने अभिमान में
फूला चला गया,
सीप रो भी नही पाई,
मोती के कारण जान गमाई,
कभी इसी मोती के कारण
दूसरी सीपियों से
खुद को श्रेष्ठ मान लिया,
हाय क्यों मैंने
स्वाति का पान किया।।

         कुसुम कोठारी।

17 comments:





  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२२-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१३"साँस"( चर्चाअंक -३६४८) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी ।
      बहुत समय से ब्लाग पर ध्यान नहीं दे पा रही ,सक्रियता काफी कम है ।
      ऐसे में आपका मेरी रचना को चर्चा मंच पर लेकर जाना बहुत सुकून दे रहा है।
      पुनः आभार।
      मैं कोशिश करूंगी मंच पर उपस्थिति दूं ।
      सस्नेह।

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  2. बहुत सुन्दर।
    दूसरों के ब्लॉग पर भी टिप्पणी दिया करो।

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    1. सादर आभार आदरणीय,मेरी सदा यह कोशिश रहती है ,अभी काफी व्यस्ता के कारण अनुपस्थिति हो रही है।
      सादर।

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  3. सीप और मोती ..बहुत सुन्दर सृजन कुसुम जी । सम्पूर्ण जीवन का मर्म समाया है रचना में...बेहतरीन सृजन ।

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    1. स्नेह आभार मीना जी आपकी मोहक शब्दावली मन मोह जाती है ,और उत्साह वर्धन होता है ।
      सदा स्नेह बनाए रखें।

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  4. उधर सीपी बिखरी पड़ी थी
    दो टुकड़ों में
    कराहती सी रेत पर असंज्ञ सी,
    अपना सब लुटा कर,
    वेदना और भी बढ़ गई
    जब जाते-जाते
    मोती ने एक बार भी
    उसको देखा तक नही,
    बस अपने अभिमान में
    फूला चला गया,
    सीप रो भी नही पाई,
    मोती के कारण जान गमाई,... आजीवन हम भी तो इसी स्थ‍ित‍ि से दोचार होते रहते हैं कुसुम जी, क्यों ठीक कहा ना ...

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    1. बहुत बहुत आभार अलंकनंदा जी ।
      आपकी सार्थक टिप्पणी से रचना सार्थक हुई ,रचना के अंतर निहित भावों को समझने के लिए हृदय तल से आभार।
      प्रतीकात्मक लिखी रचना के भावों पर विशेष ध्यान आपका ।
      पुनः आभार।
      सस्नेह।

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  5. एक दिन सीप
    एक खोजी के हाथ में
    कुनमुना रही थी,
    अपने और अपने अंदर के
    अपूर्व को बचाने,
    पर हार गई उसे
    छेदन भेदन की पीडा मिली,
    सीप और मोती के माध्यम से पूरे जीवन का सच उकेर दिया आपने...।सबसे बड़ी खुशी ही कभी कभी जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप बन जाती है
    बहुत ही लाजवाब सृजन
    बहुत बहुत बधाई आपको।

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    1. बहुत सुंदर सुधा जी व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना मुखरित हुई।
      आपकी उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार।

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  6. वाह सखी।क्या खूब लिखा आपने।बेहतरीन

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।

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  7. बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धन हुआ।

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  8. पोषती रही सीप
    अपने हृदी को प्यार से,
    मोती धीरे-धीरे
    शैशव से निकल
    किशोर होता गया,
    सीप से अमृत पान
    करता रहा तृप्त भाव से,
    अब यौवन मुखरित था

    एक माँ भी तो अपने जिगर के टुकड़े को यूँ ही सींचती और पालती हैं और फिर एक दिन वो यूँ ही बेरहमी से उसे छोड़ चला जाता हैं।
    सीप ने मोती को सर्वस्व दे दिया --मोती कीमती हो गया --और सीप टूटकर बिखर गई।
    बेहद मार्मिक सृजन कुसुम जी ,सादर नमन

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    1. आपकी व्याख्या के साथ विस्तृत टिप्पणी रचना के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालती ।
      सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए सास्नेह आभार।

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  9. प्रिय कुसुम बहन , सीप भी तो एक मादा और जननी है | उसे क्यों दुःख ना मिले वेदना ना मिले ? स्त्री का वेदना से चोली दामन का साथ है | सच कहा सखी कामिनी ने --- एक माँ भी यूँ ही संतान को पालती है और अंत में बहुधा निष्ठुर संतान यूँ ही मुंह मोड़ जाती है | बहुत मार्मिक काव्य चित्र रचा है आपने | आपके लेखन की कला का कमाल है कि बहुत सरस पठनीय बन गयी है रचना | सस्नेह शुभकामनाएं|

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    1. बहुत सही कहा आपने रेणु बहन ।
      सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
      आपकी विस्तृत टिप्पणी सदा रचना के समानांतर चलती है,और लेखन को पूर्णता देती है ।
      सस्नेह आभार।

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