Thursday, 19 March 2020

नागफनी

नागफनी

कहो तो नागफनी
मरुस्थल के सीने पर कैसे?

कुदरत को धत्ता बताती,
खिलखिलाती रहती ऐसे।
सूखे गात वाली माँ के ,
आँचल में पल कर जैसे।
कोई बिरावन परवान चढ़ता
अपने ही बल पर ऐसे।।

कहो तो नागफनी
मरुस्थल के सीने पर कैसे?

भूरी भूमि पर लिए हरितिमा,
हृदय ताल में पुष्प खिले।
बाहर कांटे दिखने को ,
अंतर कितनी नमी मिले।
प्यास अपने अंदर सोखे
नीर समेटे बादल जैसे।।

कहो तो नागफनी
मरुस्थल के सीने पर कैसे?

धूप ताप अंधड़ सहती हो
फिर भी सदा हँसती रहती हो
मौसम बदले रूप कई
तुम अमर कथा सी बहती हो
औषध गुण से भरी भरी
अपना अस्तित्व संभाला ऐसे।।

कहो तो नागफनी
मरुस्थल के सीने पर कैसे?

        कुसुम कोठारी।

7 comments:

  1. लाज़वाब
    नागफ़नी माँ के पास जिस चीज की अपर्याप्तता है उसको अपने हृदय में सँजो लेती है
    और एक बूंद भी जाया नहीं होने देती।
    कमी का रोना नहीं रोती बल्कि हंसती रहती है
    फूल से शोभा बढ़ाती है अपनी माँ की।
    ये भी प्यार है।
    प्यारी रचना।
    नयी रचना पढ़े- सर्वोपरि?

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  2. वाह!कुसुम जी ,बेहतरीन !

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  3. कहो तो नागफनी मरुस्थल के सीने पर कैसे
    कुदरत को धत्ता बताती खिलखिलाती रहती ऐसे.
    बेहतरीन भाव प्रस्तुति

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  4. धूप ताप अंधड़ सहती हो
    फिर भी सदा हँसती रहती हो
    मौसम बदले रूप कई
    तुम अमर कथा सी बहती हो
    औषध गुण से भरी भरी
    अपना अस्तित्व संभाला ऐसे।।
    वाह!!!!
    नागफनी जैसे जटिल विषय पर इतनी शानदार प्रस्तुति...
    बहुत ही लाजवाब।

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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  6. कुदरत को धत्ता बताती,
    खिलखिलाती रहती ऐसे।
    सूखे गात वाली माँ के ,
    आँचल में पल कर जैसे।

    वाह !!बहुत ही सुंदर सृजन कुसुम जी

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  7. मरुस्थल में खिलखिलाती नागफनी भी दूसरों के लिए प्रेरक हो सकती है ये आपकी रचना से पता चलता है कुसुम बहन | कंटीली नागफनी के लिए फूलों से सुकोमल भाव और ममत्व लिए प्यारी सी रचना | सस्नेह शुभकामनाएं

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