Monday, 2 March 2020

उर्मि की स्वर्णिम माला

उर्मि की स्वर्णिम माला

चीर तिमिर की छाती को अब
सूरज उगने वाला है
प्राची के धुँधले प्रांगन में
उर्मि की स्वर्णिम माला है।

निशा सँभालों अब निज गठरी
गमन करो तुम अब जग से
प्रगति राह पर भोला मानव
चल पड़ा अब तीव्र डग से
सप्त गुणों को लेकर जागा
उर्मि भरा ये प्याला है।
चीर तिमिर की छाती को अब
सूरज उगने वाला है।।

बांध लिया क्यों बंधन झूठा
निर्झर जैसे बह निकलो
उतंग गिरी के सरगम बन
सरिता बनकर के छलको
काल की निर्बाध चाल संग
दौड़े हिम्मत आला है।
चीर तिमिर की छाती को अब
सूरज उगने वाला है ।।

सागर का अंतर मंथन कर
मोती तुमको पाना है
हाथ बढ़ा कर नभ को थामों
चाँद धरा पर लाना है
चाहो तो सब-कुछ तुम करलो
त्यागो गड़बड़ झाला है ।
चीर तिमिर की छाती को अब
सूरज उगने वाला है ।।

कुसुम कोठारी।

30 comments:

  1. निशा सँभालों अब निज गठरी
    गमन करो तुम अब जग से
    प्रगति राह पर भोला मानव
    चल पड़ा अब तीव्र डग से



    आह कुसुक जी
    आपकी लखन शैली की फैन हूँ। ..काश ऐसा लिख पाऊं मैं भी इक दिन।

    ऐसी रचना लिखने और हम सब के साथ सांझां करने के लिए आभार

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    1. मन को आह्लादित करती आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिए आत्मीय आभार जोया जी!
      बहुत अच्छा लगता है, जब कोई ऐसे अपनेपन का अहसास जताता है ।
      ढेर सा सरनेम ।

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  2. सागर का अंतर मंथन कर
    मोती तुमको पाना है
    हाथ बढ़ा कर नभ को थामों
    चाँद धरा पर लाना है
    प्रेरक रचना और सुंदर शब्द चयन हेतु बहुत-बहुत बधाई आदरणीया कुसुम जी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला और लेखनी को उर्जा।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-03-2020) को    "रंगारंग होली उत्सव 2020"  (चर्चा अंक-3630)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. बहुत सा आभार आदरणीय।
      चर्चा मंच पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
      मैं चर्चा में अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  4. बेहद खूबसूरत नवगीत लिखा है सखी 🌹👌

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न हुआ।
      सस्नेह।

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  5. बहुत सुन्दर प्रेरणादायक नवगीत आदरणीया 👌👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार पूजा जी, आपका ब्लाग पर सदा स्वागत है ।
      सस्नेह।

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  6. वाह! बहुत सुंदर आदरणीया कुसुम दीदी आपका नवगीत लयबद्ध रचनाओं की श्रेणी में बेहतरीन है.
    नवगीत की विशिष्टताओं के साथ प्रवाह इसकी ख़ासियत है. आपको ढेर सारी बधाई इस विधा को लोकप्रिय बनाने के लिये.

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    1. आपकी प्रतिक्रिया से रचना को और मुझे दोनों को आत्मीय सुख मिला प्रिय अनिता आपको ढेर सा स्नेह।
      आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया ने रचना को मूल्यवान कर दिया ।
      सस्नेह।

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  7. रसिक शिरोमणि सी रचना
    शब्दो का रस पाग
    सुने पिये स्तब्ध है
    मीता मन मेरा आज

    अप्रतिम अप्रतिम कुसुम मीता अप्रतिम
    डॉ़ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

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    1. ओहो मीता आपको ब्लाग पर देख कितना आनन्द मिला बतला नहीं सकती। ढेर सा स्नेह आभार।
      सस्नेह ।

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  8. सागर का अंतर मंथन कर
    मोती तुमको पाना है
    हाथ बढ़ा कर नभ को थामों
    चाँद धरा पर लाना है
    चाहो तो सब-कुछ तुम करलो
    त्यागो गड़बड़ झाला है ।
    चीर तिमिर की छाती को अब
    सूरज उगने वाला है ।।
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर प्रेरक लाजवाब सृजन।

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  9. बहुत बहुत आभार सुधा जी।
    आपकी सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया से सदा मुझे सदा उर्जा मिलती है, और आत्मीय खुशी भी ।
    सस्नेह आभार।

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  10. बहुत ही सुन्दर

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    1. बहुत बहुत आत्मीय आभार आपका पूनम जी।

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  11. चीर तिमिर की छाती को अब
    सूरज उगने वाला है
    प्राची के धुँधले प्रांगन में
    उर्मि की स्वर्णिम माला है।
    प्रिय कुसुम बहन , सुन्दर कोमल , मधुर शब्दावली और उसमें गुंथे भाव छायावादी कवियों की याद दिलाते हैं | इस मनभावन सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और स्नेह आपके लिए |

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    1. आपकी प्रतिक्रिया सदा मुग्ध करती है रेणु बहन! रचना के हर शब्द को आप आत्मसात करके फिर जो टिप्पणी लिखते हो वो पुरी रचना की आत्मा का दर्शन करवा देता है ।
      बहुत बहुत सा स्नेह आभार।
      सदा आपका स्नेह मिलता रहे।

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  12. अद्भुत.. अनुपम और मनमोहक... कायल हूँ मैं आपकी लेखनी की ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया के बिना मेरी रचना सदा अधुरी होती है ।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  13. आहा!वाह!
    आदरणीया दीदी जी सादर प्रणाम 🙏
    कितनी सुखद पंक्तियाँ प्रस्तुत की आपने।
    आपकी इस रचना सूर्य की किरणें साक्षात समाहित हैं शायद यही कारण है जो ये निराशा के अंधकार को दूर कर आशा का उजियारा दे आगे बढ़ने को प्रेरित कर रही। सच....मन आनंदित हो गया।
    अप्रतिम,उत्तम,मनमोहक जैसे विशेषणों से अलंकृत आपके इस अनूठे सृजन और आपको सादर प्रणाम 🙏 सुप्रभात।

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  14. Anchal Pandey ओह आँचल !!क्या कहूं कोई शब्द नहीं है मेरे पास ,आपकी सुंदर मनभावन प्रतिक्रिया बस समझो मेरी रचना के लिए संजीवनी है ।
    आभार कहना कम होगा ढेर सा स्नेह ।

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  15. वा। !कुसुम जी ,बहुत ही प्रेरणादायक सृजन 👌👌👌बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप !

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  16. वाह कुसुम दी बहुत ही सुंदर नवगीत लिखा आपने... आप हर विधा में माहिर हो अच्छा लगता है आपको पढ़ना

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  17. बहुत सुन्दर सृजन 👏👏👏👏👌👌👌👌

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  18. त्यागो गड़बड़ झाला है ।
    चीर तिमिर की छाती को अब
    सूरज उगने वाला है ।।
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर प्रेरक लाजवाब सृजन।

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  19. As stated by Stanford Medical, It is really the one and ONLY reason women in this country get to live 10 years longer and weigh an average of 19 kilos less than we do.

    (And actually, it has totally NOTHING to do with genetics or some secret-exercise and absolutely EVERYTHING related to "how" they eat.)

    P.S, What I said is "HOW", not "WHAT"...

    Tap this link to uncover if this brief questionnaire can help you decipher your real weight loss possibility

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  20. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'कैनवास में आज कुसुम कोठारी जी की रचनाएँ' (चर्चा अंक-3740) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हमारी विशेष प्रस्तुति 'कैनवास' में आपकी यह प्रस्तुति सम्मिलित की गई है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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