Monday, 17 February 2020

कुसुम की कुण्डलियाँ-१०

कुसुम की कुण्डलियाँ - १०

३७ विषय-विनती

विनती है माँ पाद में , झांकी देख निहाल ।
तेरी छवि को देखके ,झुकता मेरा भाल ।
झुकता है मुझ भाल , बुद्धि से भर दे झोली ।
गाऊं मैं गुणगान ,बोल के मीठी बोली ।
कहे कुसुम कर जोड़ , बैन अंतर से सुनती ।
वीणा शोभित हाथ , शुभ्र वसना सुन विनती ।।

३८ विषय-भावुक

कैसी बेड़ी में फँसा ,भावुक मन अनजान ।
अविनाशी ये जीव है , मानो अरे सुजान ।
मानो अरे सुजान , परख लो करनी अपनी ।
छोड़  सकल ही राग , ब्रह्म की माला जपनी ।
सदा भावना शुद्ध , रहे पावन  बस ऐसी ।
मुक्त रहें हर प्राण , पाँव में बेड़ी कैसी ।।

३९ विषय-धरती

धरणी धरती क्षिति धरा ,तेरे कितने नाम ।
वसुन्धरा हे मेदिनी ,  सब मानव के धाम ।
सब मानव के धाम ,मही तू कितनी प्यारी ।
वसुधा,अचला,मान  , कामिनी  सी तू न्यारी ।
कहे कुसुम ये बात  , जले दोनों ज्यों अरणी ।
नारी तू भी भूमि  ,  क्षमा में जैसे धरणी ।।

४० विषय-मानव

मानव सुन तन दीप में ,डाल सुमति का तेल ।
ज्ञान रूप बाती जला , जग में फैले मेल ।
जग में फैले मेल , करो बस सुंदर करनी ।
सत्य एक बस जान  , कर्म जैसी ही भरनी ।
कहे कुसुम सुन बात ,  हृदय से मारो दानव ।
रखो प्रेम सद्भाव , बनो सज्जन तुम मानव ।।

कुसुम कोठारी।

6 comments:

  1. वाह!!!
    लाजवाब कुण्डलियाँ...

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  2. वाह!बेहतरीन कुण्डलियाँ 👌👌👌

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  3. अद्भुत !!
    सभी कुंडलियां मनमोहक भावों से सुसज्जित ।
    बेहतरीन व लाजवाब सृजन ।

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  4. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।

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