Monday, 10 February 2020

विश्वास

.      नव गीत १४ १४

             विश्वास

 .   नैया डोली धारा में
      दिखता नहीं किनारा था।
   टूटी थी मन की आशा
       तेज धार मझधारा था।

   होंठ प्यास से सूखे थे 
       सागर पानी खारा था
   आँखो में भय की छाया
       पास न कोई चारा था ।
   टूटी थी.......

   कर को जोड़ दुआ मांगी
      प्रभु ही एक दुलारा था।
   हाथ थामने आयेगा
      दृढ़ विश्वास हमारा था ।
   टूटी थी.....

    देखा फिर भारी अचरज
        पास खड़ा इक नाविक था
   ज्ञानी जन सच कहते हैं
        तुम बिन कौन सहारा था ।
    टूटी  थी.....

              कुसुम कोठारी।

10 comments:

  1. एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास।
    एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास।

    उचित कहा आपने दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका भाई आपकी त्वरित प्रतिक्रिया से सदा उत्साह वर्धन होता है।

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  2. देखा फिर भारी अचरज
    पास खड़ा इक नाविक था
    ज्ञानी जन सच कहते हैं
    तुम बिन कौन सहारा था ।
    अद्भुत सृजन....भक्ति भाव से ओतप्रोत अत्यंत सुन्दर नवगीत ।

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  3. जी जरूर आना ही हैं पाँच लिंक में आना मेरे लिए सदा सौभाग्य का विषय है।
    सस्नेह आभार।

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  4. बहुत बहुत आभार आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदा उर्जा मिलती है।

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  5. कर को जोड़ दुआ मांगी
    प्रभु ही एक दुलारा था।
    हाथ थामने आयेगा
    दृढ़ विश्वास हमारा था । बेहतरीन रचना सखी 👌

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  6. वाह! बहुत आनंदित करने वाला नवगीत रचा है आपने आदरणीया कुसुम दीदी. लयबद्ध सृजन अपने आप में एक विशेष आकर्षण बन जाता है. बधाई हो दीदी.

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  7. बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन | शब्दचित्र के माध्यम से विशवास की महिमा और विशवास की विजय श्री का क्या कहना | सस्नेह --

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