Friday, 24 January 2020

जलती तीली

श़मा ज़लती है ,पिघलती है,
अंत तक अंजुमन को रौशन रखती है।
तीली बस सुलगती और बुझती है
पर कुछ जलाती,जब-जब भी जलती है।
जलाने की शक्ति, जब दीप जलाती,
ज्योति से  हर कोना पावन मंदिर का भरती।
धूप की भीनी सौरभ मन को  भाती ,
भुखे उदर को देती रोटी, चूल्हा जब जलाती।
आती लाज उसे जब तम्बाकू सुलगाती,
जब भी जलती सिगरेट वो रोती ।
ख़ुद पांवों के नीचे मसली जाती,
लेकर अधजला कलेवर कहां-कहां ठोकर खाती।
दारुण दुखद का कारण होते वो पल  ,
क्रूर लोगों के हाथ से बस्तियां जाती जल।
दिखती छोटी, है  ख़ामोश पर ,
कितनी शक्ति है  उसके अंदर ।।

कुसुम कोठारी।

4 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २७ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. वाह।सुंदर लिखा आपने सखी।बढिया।

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  3. सुन्दर सृजन कुसुम जी

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  4. जलाने की शक्ति, जब दीप जलाती,
    ज्योति से हर कोना पावन मंदिर का भरती


    लाज़बाब......, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति कुसुम जी ,सादर नमस्कार

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