Monday, 27 January 2020

नायिका सौंदर्य

सजा थाल कहां चली
ओ पूगल की पद्मिनी
नख शिख श्रृंगार रचा
ओ रूपसी मृगनयनी !

कहां चली गज गामिनी
मधुर स्मित रेख होठ धरी
रत्न जड़ित दृग जुडवां
शुक नासिका भ्रमरी !

मुख उजास चंद्रिका सदृश
गुलाब घुल्यो ज्यों क्षीर सागर
मन मोहिनी मन हरणीं
गात लचक ज्यों चंपक डार!

शीश बोरलो झबरक झूमे
चँद्र टिकुली चढी  लिलार
काना झुमका नथ मोतियन की
सजा गले में नव लख हार!

ओ मधुकरी मनस्वी
कंगना खनके खनन-खनन
करधन लचकत डोला जाय
पग पायल की रुनझुन-रुनझुन!

ओ गौरा सी सुभगे
कहां चली चित चोर
सांझ दीपिका झिलमिल
कभी उगती भोर!

       कुसुम कोठारी

10 comments:

  1. पूगल री पद्मिनी के सौंदर्य का आपने जो शब्दचित्र अपने अपने सृजन में किया है, वह अद्भुत है परंतु जौहर का भी वही गुण स्त्रियों में होना चाहिए दी, इस आधुनिक युग में।

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    1. सही कहा आपने पर ये सिर्फ शृंगार रचना थी आगे कभी जौहर पर भी जरूर लिखूंगी।
      बहुत बहुत आभार आपका भाई।

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  2. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(28-01-2020 ) को " चालीस लाख कदम "(चर्चा अंक - 3594) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ...
    कामिनी सिन्हा

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    1. आपका चर्चा मंच पर चर्चाकार के रूप में आना बहुत सुखद बहुत बहुत बधाई ।
      मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
      मैं चर्चा पर जरुर रहूंगी।

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  3. बहुत सुंदर लेखन सखि कुसुमजी

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    1. सस्नेह आभार नीतू जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।

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  4. बेहद खूबसूरत रचना सखी

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    1. आपका स्नेह सखी!
      सदा स्नेह मिलता रहता है आपका ।
      सस्नेह आभार।

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  5. बेहद प्यारी रचना कुसुम जी , सादर नमस्कार

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  6. वाह!!!!
    बेहद खूबसूरत सृजन।

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