Saturday, 27 July 2019

सीप की वेदना

सीप की वेदना

हृदय में लिये बैठी थी
एक आस का मोती,
सींचा अपने वजूद से,
दिन रात हिफाजत की
सागर की गहराईयों में,
जहाँ की नजरों से दूर,
हल्के-हल्के लहरों के
हिण्डोले में झूलाती,
सांसो की लय पर
मधुरम लोरी सुनाती,
पोषती रही सीप
अपने हृदी को प्यार से,
मोती धीरे धीरे
शैशव से निकल
किशोर होता गया,
सीप से अमृत पान
करता रहा तृप्त भाव से,
अब "यौवन" मुखरित था
सौन्दर्य चरम पर था,
आभा ऐसी की जैसे
दूध में चंदन दिया घोल,
एक दिन सीप
एक खोजी के हाथ में
कुनमुना रही थी,
अपने और अपने अंदर के
अपूर्व को बचाने,
पर हार गई उसे
छेदन भेदन की पीडा मिली,
साथ छूटा प्रिय हृदी का ,
मोती खुश था बहुत खुश
जैसे कैद से आजाद,
जाने किस उच्चतम
शीर्ष की शोभा बनेगा,
उस के रूप पर
लोग होंगे मोहित,
प्रशंसा मिलेगी,
हर देखने वाले से ,
उधर सीपी बिखरी पड़ी थी
दो टुकड़ों में
कराहती सी रेत पर असंज्ञ सी,
अपना सब लुटा कर,
वेदना और भी बढ़ गई
जब जाते-जाते
मोती ने एक बार भी
उसको देखा तक नही,
बस अपने अभिमान में
फूला चला गया,
सीप रो भी नही पाई,
मोती के कारण जान गमाई,
कभी इसी मोती के कारण
दूसरी सीपियों से
खुद को श्रेष्ठ मान लिया,
हाय क्यों मैंने
स्वाति का पान किया।

         कुसुम कोठारी।

12 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ,सीप रो भी ना पायी
    मोती के कारण जान गवाई
    कभी किसी मोती के कारण
    दूसरी सिपियों से स्वयं को श्रेष्ठ मांन
    लिया हाय क्यों मैंने स्वाति का पान
    किया

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना गतिमान हुई।

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  2. अक़्सर सीपियों के दर्द की वजह स्वाति के बूँद ही होते हैं .. बहुत ही मर्मस्पर्शी ...

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    1. जी बहुत सा आभार आपका, ब्लाग पर आपका स्वागत है , बहुत सटीक व्याख्या।
      सादर।

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  3. कभी इसी मोती के कारण
    दूसरी सीपियों से
    खुद को श्रेष्ठ मान लिया,
    हाय क्यों मैंने
    स्वाति का पान किया।
    बहुत हृदयस्पर्शी सृजन कुसुम जी। !!

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी ।
      सस्नेह।

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  4. जी आभार आपका हृदय तल से।

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  5. बहुत सुंदर सृजन

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    1. जी सादर आभार आदरणीय।
      रचना को सार्थकता मिली।

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  6. बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी

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  7. बहुत सुंदर रचना।

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  8. सीप के दर्द को बाखूबी लिखा है ... नया बिम्ब सृजित किया है ...

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