दरख्त के साये से
दरख्त के स्याह सायों से
पत्तियों के झरोखे से
झांक रहा चाँद, हो बेताब
खड़ी दरीचे मृगनयनी
नयन क्यों सूने से बेजार
कच उलझे-उलझे
छायी है मुख पर
उदासी की छाया
पुछे चाँद ओ गोरी
पास नही है साजन तेरा
कहां है तेरे पीव का डेरा
बांट तकती सांझ सवेरा
तूझ को चिंताओं ने घेरा
ना हो उदास कहता मन मेरा
आन मिलेगा साजन तेरा
सुन चाँद के बैन
मुख पर रंगत आई
विरहा के बादल से
आस किरण मुस्काई।
कुसुम कोठारी।
दरख्त के स्याह सायों से
पत्तियों के झरोखे से
झांक रहा चाँद, हो बेताब
खड़ी दरीचे मृगनयनी
नयन क्यों सूने से बेजार
कच उलझे-उलझे
छायी है मुख पर
उदासी की छाया
पुछे चाँद ओ गोरी
पास नही है साजन तेरा
कहां है तेरे पीव का डेरा
बांट तकती सांझ सवेरा
तूझ को चिंताओं ने घेरा
ना हो उदास कहता मन मेरा
आन मिलेगा साजन तेरा
सुन चाँद के बैन
मुख पर रंगत आई
विरहा के बादल से
आस किरण मुस्काई।
कुसुम कोठारी।
छाया के माध्यम से वियोग रस का अनुपम सृजन कुसुम जी ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका उत्साह वर्धन के लिये ।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/05/2019 की बुलेटिन, " मजबूत इरादों वाली अरुणा शानबाग जी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसादर आभार आपका।
Deleteछा गई सखी..
ReplyDeleteसादर..
आपके स्स्नेह के लिए तहे दिल से शुक्रिया सखी।
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।
Deleteसुंदर
ReplyDeleteसस्नेह आभार मीना जी ।
Deleteबहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमस्कार कुसुम जी
ReplyDeleteनमस्कार मित्र जी और ढेर सारा स्नेह आभार।
Deleteसुंदर विरह राग
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार प्रिय सुधा बहन ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteक्या बात है प्रिय कुसुम बहन चाँद की इस सांत्वना से गोरी को चैन मिला | अद्भुत संवाद जो निराशा से भरी गोरी के विकल मन में आशा की किरण जगाता है | चित्रात्मकता का सुंदर संसार रचने में आपकी लेखनी माहिर है | हार्दिक शुभकामनायें भावपूर्ण रचना के लिए सस्नेह
ReplyDeleteसस्नेह आभार रेणु बहन आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से साधारण रचना भी कुछ खास एहसास देने लगती है आपका स्नेह सदा वांछित है।
Deleteसस्नेह।
बेहतरीन रचना कुसुम
ReplyDeleteसमय के चक्रव्युव्ह से निकलता मन , मन की गर्भगृह से निकलते शांत शब्द , नीरव गूंज की गूँजरव को प्रतीत करती ध्वनी , यही तो खासियत है आपंके शब्द जाल की
ReplyDeleteजमाना भलेही इसे कविता कहे मगर ह्यो5 एक प्रेरणा भरा झरना ।......
दादा पाटिल