Friday, 31 May 2019

देखो संध्या इठलाके आई

सूरज नीचे उतरा आहिस्ता
देखो संध्या इठलाके आई
रूप सुनहरा फैला मोहक
शरमा के फिर मुख छुपाया
रजनी ने  नीलांंचल खोला
निशि गंधा भी महक चला
भीनी भीनी  सौरभ छाई
हीमांशु गगन भाल चमका
धवल आभा से चमके तारे
निशा चुनरी पर जा बिखरे
रात सिर्फ़ अंधकार नही है
एक सुंदर  विश्राम  भी है
तन,मन का औ जीवन का
एक  नया सोपान  भी है ।

          कुसुम कोठारी।

13 comments:

  1. रात सिर्फ़ अंधकार नही है
    एक सुंदर विश्राम भी है
    तन,मन का औ जीवन का
    एक नया सोपान भी है.... वाह सही कहा आपने रात तन,मन और जीवन का एक नया सोपान भी है बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02 -06-2019) को "वाकयात कुछ ऐसे " (चर्चा अंक- 3354) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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    1. बहुत सा आभार हृदय तल से लेखन सार्थक हुवा।

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  3. दिल को छूता हुआ बेहद भावपूर्ण रचना ,सादर नमस्कार कुसुम जी

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    1. बहुत सा स्नेह कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।

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  4. बहुत सुंदर संदेश प्राकृतिक उपादानों में आवेष्टित।

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    1. जी सादर आभार विशिष्ट शब्दों में सराहना अनुठी। मन प्रसन्न हुवा।
      सादर

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  5. Replies
    1. जी सादर आभार आपका प्रोत्साहन मिला ।

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  6. जी सादर आभार आपका मेरी रचना को सम्मान मिला। साभार ।

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