सूरज नीचे उतरा आहिस्ता
देखो संध्या इठलाके आई
रूप सुनहरा फैला मोहक
शरमा के फिर मुख छुपाया
रजनी ने नीलांंचल खोला
निशि गंधा भी महक चला
भीनी भीनी सौरभ छाई
हीमांशु गगन भाल चमका
धवल आभा से चमके तारे
निशा चुनरी पर जा बिखरे
रात सिर्फ़ अंधकार नही है
एक सुंदर विश्राम भी है
तन,मन का औ जीवन का
एक नया सोपान भी है ।
कुसुम कोठारी।
देखो संध्या इठलाके आई
रूप सुनहरा फैला मोहक
शरमा के फिर मुख छुपाया
रजनी ने नीलांंचल खोला
निशि गंधा भी महक चला
भीनी भीनी सौरभ छाई
हीमांशु गगन भाल चमका
धवल आभा से चमके तारे
निशा चुनरी पर जा बिखरे
रात सिर्फ़ अंधकार नही है
एक सुंदर विश्राम भी है
तन,मन का औ जीवन का
एक नया सोपान भी है ।
कुसुम कोठारी।
रात सिर्फ़ अंधकार नही है
ReplyDeleteएक सुंदर विश्राम भी है
तन,मन का औ जीवन का
एक नया सोपान भी है.... वाह सही कहा आपने रात तन,मन और जीवन का एक नया सोपान भी है बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌
बहुत बहुत आभार सखी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02 -06-2019) को "वाकयात कुछ ऐसे " (चर्चा अंक- 3354) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
बहुत सा आभार हृदय तल से लेखन सार्थक हुवा।
Deleteदिल को छूता हुआ बेहद भावपूर्ण रचना ,सादर नमस्कार कुसुम जी
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteबहुत सुंदर संदेश प्राकृतिक उपादानों में आवेष्टित।
ReplyDeleteजी सादर आभार विशिष्ट शब्दों में सराहना अनुठी। मन प्रसन्न हुवा।
Deleteसादर
बहुत खूब
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका प्रोत्साहन मिला ।
Deleteजी सादर आभार आपका मेरी रचना को सम्मान मिला। साभार ।
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन
ReplyDeleteWah सुन्दर सृजन
ReplyDelete