Wednesday, 6 March 2019

फाग पर ताँका

फाग पर ' ताँका 'विधा की रचनाएँ ~

१. आओ री सखी
       आतुर मधुमास
       आयो फागुन
       बृज में होरी आज
       अबीर भरी फाग।

२. शाम का सूर्य
       गगन पर फाग
       बादल डोली
      लो सजे चांद तारे
      चहका मन आज।

३. उड़ी गुलाल
       बैर भूलादे मन
       खेलो रे खेलो
       सुंदर मधुरस
       मनभावन फाग ।
               कुसुम कोठारी ।


ताँका (短歌) जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य विधा है। इस विधा को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे। हाइकु का उद्भव इसी से हुआ।

इसकी संरचना ५+७+५+७+७=३१ वर्णों की होती है।

10 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत स्नेह बहना।

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  2. १. आओ री सखी
    आतुर मधुमास
    आयो फागुन
    बृज में होरी आज
    अबीर भरी फाग।
    ..बेहतरीन सृजन
    ताँका के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आभार आदरणीया

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    1. जी बहुत सा आभार सब कुछ ध्यान पूर्वक पढने और सुंदर प्रतिक्रिया के लिये।

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  3. बहुत ही सुंदर भाव भरी पंक्तियों में सजे तांका प्रिय कुसुम जी | मुझे तो इस तरह के नये प्रयोगों की जानकारी ना के बराबर है पर आपने तांका को बहुत अच्छे से लिखा | साभार बहना |

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    1. रेनू बहन आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया और सराहना सदा मूझे बहुत प्रसन्नता देती है और व्याख्यात्मक टिप्पणी हमेशा रचना का परिमार्जन करती है।
      सस्नेह आभार बहन।

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  4. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति

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  5. भावों से सजे सुन्दर तांका ... विधा की जानकारी के साथ पढने का मजा दूना हो जाता है ... अप्रतिम ...

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    1. बहुत बहुत आभार नासवा जी गुणीजनो की टिप्पणी सदा मार्ग दर्शन करती है और उत्साह वर्धन भी ।
      सादर।

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