रावणों की खेती
अपने वजूद के लिये
रावण लडता रहा
और स्वयं नारायण भी
अस्तित्व न मिटा पाये उसका
बस काया गंवाई रावण ने
अपने सिद्धांत बो गया
फलीभूत होते होते
सदियों से गहराते गये
वजह क्या? न सोचा कभी
बस तन का रावण जलता रहा
मनोवृत्ति में पोषित
होते रहे दशानन
राम पुरुषोत्तम के सद्गुण
स्थापित कर गये जग में
साथ ही रावण भी कहीं गहरे
अपने तमोगुण के बीज बो चला
और अब देखो जिधर
राम बस संस्कारों की
बातों, पुस्तकों और ग्रंथों में
या फिर बच्चों को
पुरुषोत्तम बनाने का
असफल प्रयास भर है,
और रावणों की खेती
हर और लहरा रही है।
कुसुम कोठारी।
अपने वजूद के लिये
रावण लडता रहा
और स्वयं नारायण भी
अस्तित्व न मिटा पाये उसका
बस काया गंवाई रावण ने
अपने सिद्धांत बो गया
फलीभूत होते होते
सदियों से गहराते गये
वजह क्या? न सोचा कभी
बस तन का रावण जलता रहा
मनोवृत्ति में पोषित
होते रहे दशानन
राम पुरुषोत्तम के सद्गुण
स्थापित कर गये जग में
साथ ही रावण भी कहीं गहरे
अपने तमोगुण के बीज बो चला
और अब देखो जिधर
राम बस संस्कारों की
बातों, पुस्तकों और ग्रंथों में
या फिर बच्चों को
पुरुषोत्तम बनाने का
असफल प्रयास भर है,
और रावणों की खेती
हर और लहरा रही है।
कुसुम कोठारी।
बहुत खूब..... आदरणीया
ReplyDeleteबिल्कुल सत्य !
बहुत बहुत आभार रविंद्र जी समर्थन और सराहना के लिए । तहेदिल से शुक्रिया
Deleteप्रिय सखी कुसुम जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना 👌
सिद्धांत राम के, कर्म रावण के, काया में समेट, फुल मोहब्बत के खिला रहा, निर्बोध मनु ..|
बहुत सा स्नेह आप को
ढेर सा आभार सखी आपकी विश्लेषण देती सुंदर प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली, सुंदर पंक्तियाँ आपकी।
Deleteसस्नेह
बेहद खूबसूरत बात कही है कुसुम जी रचना के माध्यम से । राम के गुणों का गुणगान भर ही होता है व्यवहार में प्रयोग तमोगुण का ही हर कहीं दिखता है ।
ReplyDeleteजी मीना जी सदियों से यही होता आया अच्छाईयां तो परवान चढते चढते चढती है पर बुराईयों का नगाड़ा बिना थाप ही बज जाता है
Deleteढेर सा आभार और स्नेह
सत्य प्रर्दशित करती रचना सखी 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार प्रिय सखी
Deleteसस्नेह ।
हुत ही सार्थक रचना प्रिय कुसुम बहन | रावण की तमोगुणी संस्कारों की फसल सचमुच हर गली हर मुहल्ले में जोर शोर से लहरा रही है | राम के संस्कार तो अध्ययन मात्र के लिए रह गये हैं --
ReplyDeleteव्यवहार के लिए नहीं |बहुत बढिया लिखा आपने --
अस्तित्व न मिटा पाये उसका
बस काया गंवाई रावण ने
अपने सिद्धांत बो गया
फलीभूत होते होते
सदियों से गहराते गये--
विचारणीय विषयात्मक रचना के लिए सस्नेह आभार और शुभकामनायें |
रेनू बहन आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना और मुखरित हो जाती है,आपने बहुत सुंदर विश्लेषण किया और रचना के भावों को समर्थन हृदय तल से आभार बहन।
Deleteसस्नेह ।
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 12 जनवरी 2019को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
ReplyDeleteसादर ।
बहुत सा आभार सखी मुखरित मौन में अपनी रचना को देख मुझे बहुत ही नाज होगा सच अनुग्रहित हूं मै आपके इस चुनाव पर हृदय तल से आभार ।
ReplyDeleteसस्नेह सादर
सच में रावण अपने बीज बो गया. रक्त बीज की तरह अब हर ओर रावण ही घूमते दिखते हैं. बहुत सार्थक प्रस्तुति . 🙏 🙏
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