Monday, 6 August 2018

मन पंछी

.                      मंन पंछी

सुबह उड़ता आसमां  में शाम ज़मी पर होता है
मन पंछी तेरी माया अद्भुत जाने क्या तूं बोता है

कितनी भी हो धूप प्रचंड पंख ही तेरी छाया है
जो तूने है मन में ठाना सब साबित कर पाया है

उड़ने का उन्माद ऊँचाईयों तक ले जाता है
धरा से आसमान तक पंखों  में भर लाता है

तो घायल होकर कभी तूं नीड़ में लौट आता है
फिर अगली उड़ान को तूं तैयार हो जाता है

कितने सुख और दुख कितने बांहों में भरता है
तेरे अंदर कर्ता के गुण तूं खुद भाग्य विधाता है।
                     
                      कुसुम कोठारी।

12 comments:


  1. कितने सुख और दुख कितने बांहों में भरता है
    तेरे अंदर कर्ता के गुण तूं खुद भाग्य विधाता है
    बेहद खूबसूरत रचना कुसुम जी

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    1. बहुत बहुत आभार सखी।

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  2. तेरे अंदर कर्ता के गुण तू ही भाग्य विधाता ......बेहतरीन ...मन की परिभाषा ..👌👌👌👌👌✌👌👌

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    1. सस्नेह आभार मीता आपकी प्रतिक्रिया रचना के समानांतर।

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  3. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 9 अगस्त 2018 को प्रकाशनार्थ 1119 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  4. जी सादर आभार मेरी रचना को चुनने के लिये
    मै जरूर हाजिर होऊंगी।

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  5. मन की पंछी के साथ बेहतरीन तुलना। संवादात्मक लहजे में मन की वास्तविक प्रवृत्ति का चित्रण करती सुंदर रचना

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    1. आदरणीय मीना जी आपकी इतनी सुंदर सराहना सचमुच प्रोत्साहन से भरपूर और मन को आनंदित करती सी।
      सादर आभार।

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  6. कितने सुख और दुख कितने बांहों में भरता है
    तेरे अंदर कर्ता के गुण तूं खुद भाग्य विधाता है।
    बहुत खूब....., मन की गहराइयों को छूता सृजन ।

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    1. सादर आभार मीना जी आप प्रबुद्ध रचनाकारों की प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हो जाती है।
      पुनः आभार ।

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  7. वाह्ह....बेहद सुंदर सारगर्भित संदेश देती सराहनीय रचना दी। हमेशा की तरह सकारात्मकता से भरपूर एक नयी ऊर्जा का संचरण करती हुई।

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    1. प्रिय श्वेता बहुत अच्छा लगता है आपकी प्रतिक्रिया देख कर स्नेह आभार ।

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