Tuesday, 21 August 2018

चनाब का पानी ठहरा होगा

तारों ने बिसात उठाली

फकत खारा पन न देख, अज़ाबे असीर होगा
मुस्ल्सल  बह गया तो फिर बस समंदर होगा ।

दिन ढलते ही आंचल आसमां का सूर्खरू होगा
रात का सागर लहराया न जाने कब सवेरा होगा।

तारों ने बिसात उठा ली असर अब  गहरा होगा
चांद सो गया जाके, अंधेरों का अब पहरा होगा ।

छुपा है पर्दो मे कितने,जाने क्या राज गहरा होगा
अब्र के छटंते ही बेनकाब  चांद का चेहरा होगा ।

साये दिखने लगे  चिनारों पे, जाने अब क्या होगा
मुल्कों के तनाव से चनाब का पानी ठहरा होगा ।
                 
                    कुसुम कोठारी।

23 comments:

  1. बहुत सुंदर और सार्थक रचना कुसुम जी👌👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार सखी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा मनभावन रहती है ।

      Delete
  2. वाह!!कुसुम जी ,बहुत ही सुंदर और सटीक ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेह आभार सखी आपकी सक्रिय उपस्थित मन लुभा गई।

      Delete
  3. बेहतरीन गजल भावविभोर कर दिया

    ReplyDelete
    Replies
    1. ब्लॉग पर आपको देख सुखद लगा सखी आपको पसंद आई रचना ,बहुत सा आभार।

      Delete
  4. आफरीन .....गहरे उन्वान लिये पंक्तियाँ ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार मीता ।

      Delete
  5. सच में तारों ने बिसात उठा ली👌👌👌👏👏👏👏

    Waahhhhhhhhhhhhh दी जी। मंच लूट लिया आपने

    तारों ने बिसात उठा ली असर अब गहरा होगा
    चांद सो गया जाके, अंधेरों का अब पहरा होगा ।

    एक से बढ़कर एक तब्सिरा।।। वाह

    साये दिखने लगे चिनारों पे, जाने अब क्या होगा
    मुल्कों के तनाव से चनाब का पानी ठहरा होगा ।

    सारे ख़्याल एक से बढ़कर एक। बेहद लुत्फ़ आया।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ढेर सा आभार इतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिये भाई ।उत्साह बढाती आपकी पंक्तियाँ।

      Delete
  6. सुंदर....बेहतरीन गजल 👌👌👌 बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार सखी आपके आने से खुशी आजाती है साथ साथ।

      Delete
  7. जो कहा भी नहीं वो भी कह दिया आपने .बहुत सुन्दर रचना बहुत बहुत .

    छुपा है पर्दो मे कितने,जाने क्या राज गहरा होगा
    अब्र के छटंते ही बेनकाब चांद का चेहरा होगा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।

      Delete

  8. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 29 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



    .

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार मै कृतज्ञ हूं, "और आना भी निश्चित है।
      सस्नेह।

      Delete
  9. फकत खारा पन न देख, अज़ाबे असीर होगा
    मुस्ल्सल  बह गया तो फिर बस समंदर होगा...
    वाह बेहतरीन प्रस्तुति । सुंदर रचना। शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी सक्रिय सापेक्ष प्रतिक्रिया से रचना को गति मिली पुरुषोत्तम जी, सादर आभार।

      Delete
  10. वाह्ह्...वाहह्ह...दी....👌👌👌👌👌
    बेहद उम्दा,लाज़वाब लेखन दी।
    एक सार्थक रचना👍👍

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार प्रिय, आपके आने से रचना स्वयं ही सार्थक हो जाती है उस पर आपकी सराहना अनुपम उपहार।

      Delete
  11. जी बहुत बहुत आभार आपका।

    ReplyDelete