Friday, 13 July 2018

मेरी पसंद

मेरी पसंद दीदा कविता
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी की कविता "अन्वेषण"

मेघ भी है, आस भी है और आकुल प्यास भी है,
पर बुझा दे जो हृदय की  आग वह पानी कहाँ है ?

स्वाति जल की कामना में,पी कहाँ?'का मंत्र पढ़कर
बादलो  को जो रुला दे, मीत !वह मानी कहाँ है ?

क्षत-विक्षत है उर धरा का,रस रसातल में समाया,
सत्व सारा जो लुटा दे, अभ्र वह दानी कहाँ है ?

पार नभ के लोक में, जो बादलो पर राज करता,
छल-पराक्रम का धनी वह इंद्र अभिमानी कहाँ है ?

मौन  पादप, वृक्ष नीरव, वायु चंचल, प्राण व्याकुल
इन्द्रधनुषी इस रसा का रंग वह धानी कहाँ है ?

सृष्टि  भीगे, रूप सरसे, जिस सुहृद से नेह बरसे, 
उस पिघलते मेह जैसे वीर का सानी कहाँ है ? 

कुछ  सरस है,  विरस भी, तृप्त कोई, दृप्त कोई
नियति जल कि थाह लेता जीव अज्ञानी कहाँ है  ?।

2 comments:

  1. हर शेर अलग अन्दाज़ का है .।.
    लाजवाब ...

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  2. विशेष तव्वजो दी आपने सादर आभार

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