Saturday, 23 June 2018

स्नेह का अंकुर

क्या रखा है ऊंच नीच मे और क्या जात पांत है
स्नेह का एक अंकुर प्रस्फुटित हो तो कोई बात है।

धर्म को ना आड बना के दुश्मनी पालो
खून बहो किसी का भी होता आखिर खून है
पीछे रह जाती  सिसकियां और चित्कार है
जाना तो सब को आखिर एक ही राह है
वहाँ जाने वालो की कौन पूछता जात है

स्नेह का अंकुर प्रस्फुटित हो तो कोई बात है।

अपने ही मद मे फूलता हर नादां  इंसान है
काल सिरहाने खडा करता निशब्द हास है
एक पैसा तक तो जा पाता नही साथ है
संचय करता धन के साथ कितना पाप है
पतझर आते ही देखो पेडों से झरते पात है

स्नेह का अंकुर प्रस्फुटित हो तो कोई बात है।

कितने आये चले गये विश्व विजय का ध्येय लिये
रावण जैसे यूं गये कि वंश दीप तक नही रहे
अहंकार और स्वार्थ का ना तुम संसार रचो
अनेकांत के  मार्ग पर चल सभी को सम्मान दो
दिल के उजाले चुकते ही फिर अंधेरी रात है

स्नेह का अंकुर प्रस्फुटित हो तो कोई बात है।
                   कुसुम कोठारी।

7 comments:

  1. बहुत ही सुंदर
    उम्दा

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  2. वाह वाह वाह दीदी जी
    अनमोल संदेश लिए लाजवाब रचना

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    1. स्नेह आभार आंचल बहन ।

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  3. बहुत ही सुंदर संदेश परक रचना प्रिय कुसुम बहन |सचमुच सब यही कुछ समझ जाएँ तो जीवन कितना सुहाना हो जाए | सस्नेह शुभकामनायें बहन -

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