Friday, 15 June 2018

श्वेत तुंरग

श्वेत तुंरग

हे श्वेत तुंरग उतरे हो कहां से
क्या इंद्र लोक से आये हो
ऐसा उजला रूप अनुपम
कहो कहां से लाये हो
कैसे सुरमई राहो पर तुम
बादल बन कर छाये हो
मद्धरिम चाल अति मोहक
दिल तक उतर आये हो
ना सज्जा ना वस्त्राभुषन
फिर भी बिजली से लहराऐ हो
तेज मनोहर मुख पर ऐसा जैसे
संग्राम युद्ध क्षेत्र से आये हो
अविचल सा है भाव तुम्हारा
सुसंस्कृत ज्ञानी लगते हो
आये कहां से गमन कहां अब
बतादो मुझ मन की जिज्ञासा है
हे हय  मनोहर क्या तुमको
श्री हरी ने यहां पठाया है
या राम चंद्र के अश्व हो तुम
यज्ञ पूर्ण करने निकले हो
कहो कहो है सैंधव तुम
कौन लोक से आये हो
या पार्थ के रथ से लेने
विश्राम तुम आये हो
भारत मे महाभारत का
संकेत दिखाने आये हो
महाराणा के प्यारे चेतक
रूप बदल फिर आये हो।
कहो कहो हे बाजी तुम
कौन देश से आये हो।

9 comments:

  1. अति सुन्दर प्रस्तुति कोमल भावों का स्फुटन ....👌👌👌👌👌

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार मेरी रचना को मान देने के लिये मैं लिंक पर उपस्थित रहूंगी

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  3. श्वेत अश्व का उज्जल रुप
    ज्यों जाड़े की मीठी धूप

    वाह्ह्ह...दी बहुत सुंदर वर्णन आपकी कल्पनाशीलता लाज़वाब है..सच में...👌

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    1. स्नेह आभार श्वेता आपकी प्रतिक्रिया मन लुभा गई ।

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  4. वाह ! सुंदर वर्णन चेतक अश्व का।

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    1. बहुत सा आभार मीना जी आपका

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  5. सादर आभार आदरणीय।

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