Friday, 12 January 2018

अलाव

अलाव
अच्छा लगता है ना, जाडे मे अलाव सेकना
खुले आसमान के नीचे बैठ सर्दियों से लडना
हां कुछ देर गर्माहट का एहसास
तन मन को अच्छा ही लगता है
पर उस अलाव का क्या
जो धधकता रहता हर मौसम
अंदर कहीं गहरे झुलसते रहते जज्बात
बेबसी,बेकसी और भुखे पेट की भट्टी का अलाव
गर्मीयों मे सूरज सा जलाता अलाव
धधक धधक खदबदाता
बरसात मे सिलन लिये धुंवा धुंवा अलाव
बाहर बरसता सावन, अंदर सुलगता
पतझर मे आशाओं के झरते पत्तों का अलाव
उडा ले जाता कहीं उजडती अमराइयों मे
सर्दी मे सुकून भरा गहरे तक छलता अलाव।
                 कुसुम कोठारी।

4 comments:

  1. शुभ प्रभात सखी...
    आभार...
    सादर

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  2. आदरणीया / आदरणीय रचनाकार

    आपके सृजनशील सहयोग ने हमें आल्हादित किया है। इस कार्यक्रम में चार चाँद लगाने के लिए आपका तहे दिल से आभार।

    हमें पिछले गुरूवार (11 जनवरी 2018 ) को दिए गए बिषय "अलाव" पर आपकी ओर से अपेक्षित सहयोग एवं समर्थन मिला है।

    आपकी रचना हमें प्राप्त हो चुकी है जोकि संपादक-मंडल को भेज दी गयी है। कृपया हमारा सोमवारीय अंक (15 जनवरी 2018 ) अवश्य देखें। आपकी रचना इस अंक में (चुने जाने पर ) प्रकाशित की जाएगी।

    हम आशावान हैं कि आपका सहयोग भविष्य में भी ज़ारी रहेगा।

    सधन्यवाद।

    टीम पाँच लिंकों का आनंद

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