Thursday, 11 January 2018

बस चुप हो देखिये



अब सिर्फ देखिये, बस चुप हो देखिये
पांव की ठोकर मे,ज़मी है गोल कितनी देखिये।

क्या सच क्या झूठ है, क्या हक क्या लूट है
मौन हो सब देखिये राज यूं ना खोलिये
क्या जा रहा आपका बेगानी पीर क्यों झेलिये
कोई पूछ ले अगर तो भी कुछ ना बोलिये
अब सिर्फ देखिये बस चुप हो देखिये..

गैरत अपनी को दर किनार कर बैठिये
कुछ दिख जाय तो मुख अपना मोडिये
कुछ खास फर्क पडना नही यहां किसीको
कुछ पल मे सामान्य होता यंहा सभी को
अब सिर्फ देखिये, बस चुप हो देखिये..

ढोल मे है पोल कितनी बजा बजा के देखिये
मार कर ठोकर या फिर ढोल को ही तोडिये
लम्बी तान सोइये कान पर जूं ना तोलिये
खुद को ठोकर लगे तो आंख मसल कर बोलिये।
अब सिर्फ क्यों देखिये, लठ्ठ बजा के बोलिये।
                 कुसुम कोठारी

8 comments:

  1. जी दी बहुत तीखा व्यंग्य है...आपकी लेखनी का ये रंग नया है मेरे लिए। बहुत अच्छा लिखा दी आपने..।
    दी ब्लॉग में फॉलोवर बटन जोड़े और भी सेंटिग्स करें।
    ले आउट में जाकर गैजेट जोड़े में देखिये। सब समझ आयेगा।

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    1. आभार श्वेता हां कुछ नया है और आपको पसंद आया बहुत सा स्नेह आभार।
      हां धीरे धीरे समझने की कोशिश कर रही हूं पर कुछ समय लगेगा बस आप दिशा निर्देश करते रहिये।

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  2. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आयी. बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना. एक चुप्पी हजार जवाब. समय चुप रहने का ही है. बोले तो राजद्रोही घोषित होने में समय नहीं लगेगा.
    बहुत सुन्दर रचना
    सादर

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    1. प्रिय अपर्णा जी मैने कल ही ब्लॉग बनाया है और ये दुसरा पोस्ट है।
      अति आभार आपको रचना पसंद आई सटीक प्रतिक्रिया आपकी।
      स्नेह आभार।

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  3. अति सुंदर रचना
    वाह....कुसुम जी

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  4. बहुत सुन्दर सखी 👌👌

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