Tuesday, 23 January 2018

सदा बुनती हूँ तेरी

सदा सुनती हूं तेरी
जब भी अवलोकन करती हूं
अनुग्रह तेरा दिखता मुझे
जब अवलोकन करती हूं।

चिड़ियों की मधुर चहक
तेरी सदा लगती श
सुरभित फूलों की स्मित मे
सूरत तेरी दिखती
जब जब कालिमा होती गहरी,
 नव अरूणाभा से
प्रकाशित अम्बर मे
तेरा दिव्य स्वरूप आलोकित होता                         
जब भी संशय से
होती विकम्पित मै
मधुमय आशा से करते
अकम्पित मुझे
जीवन जब जब भी
हुवा विजड़ित मेरा
एक किरण करती उल्लासित
कर्म पुष्ट से तरंगित मुझे

सदा सुनती हूं, अनुग्रह दिखता मुझे तेरा
    जब भी अवलोकन  करती हूं मै तेरा ।
                कुसुम कोठारी।

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