आज नया इक गीत लिखूँ
गूँथ-गूँथ शब्दों की माला
आज नया इक गीत लिखूँ मैं।।
वीणा का जो तार न झनके
सरगम की धुन पंचम गाएँ
मन का कोई साज न खनके
नया मधुर सा राग सजाएँ
कुछ खग के कलरव मीठे से
पीहू का संगीत लिखूँ मैं।।
हीर कणों से शोभित अम्बर
ज्यों सागर में दीपक जलते
टिम-टिम करती निहारिकाएं
क्षितिज रेख जा सपने पलते
चंद्रिका से ढकी वसुंधरा
चंद्र प्रभा की प्रीत लिखूं मैं।।
मिहिका से अब निकल गया मन
धूप सुहानी निकल रही है
चटकन लागी चंद्र मल्लिका
नव दुल्हन का रूप मही है
मुखरित हो संगीत भोर का
तम पर रवि की जीत लिखूं मैं।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।
वाह ! बहुत सुन्दर कुसुम जी !
ReplyDeleteप्रसाद, पन्त और महादेवी की आप योग्य उत्तराधिकारी हैं.
सादर आभार आपका सर ।
Deleteमैं अभिभूत हूं ऐसी प्रशंसा से, अतिशयोक्ति ही सही पर सुखद।
पुनः आभार।
सादर।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 01 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०२-१०-२०२१) को
'रेत के रिश्ते' (चर्चा अंक-४२०५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी सादर आभार आपका।
Deleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
मिहिका से अब निकल गया मन
ReplyDeleteधूप सुहानी निकल रही है
चटकन लागी चंद्र मल्लिका
नव दुल्हन का रूप मही है
मुखरित हो संगीत भोर का
तम पर रवि की जीत लिखूं मैं।।
बहुत सुंदर रचना,कुसुम दी।
बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
Bahut sundar rachana, badhai
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर सस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर मधुर गीत
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteआपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
सादर।
वाह , बहुत सुंदर रचना आदरणीय ।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, उत्साह वर्धन करती सुंदर टिप्पणी।
Deleteसादर।
मिहिका से अब निकल गया मन
ReplyDeleteधूप सुहानी निकल रही है
चटकन लागी चंद्र मल्लिका
नव दुल्हन का रूप मही है
मुखरित हो संगीत भोर का
तम पर रवि की जीत लिखूं मैं।।
वाह!!!
मन में मोहक छटा बिखेरता लाजवाब सृजन।
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteलेखन में सदा नव उर्जा भरती है आपकी प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है। हमे उम्मीद है की आप आगे भी ऐसी ही जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे। हमने भी लोगो की मदद करने के लिए चोटी सी कोशिश की है। यह हमारी वैबसाइट है जिसमे हमने और हमारी टीम ने दिल्ली के बारे मे बताया है। और आगे भी इस Delhi Capital India वैबसाइट मे हम दिल्ली से संबन्धित जानकारी देते रहेंगे। आप हमारी मदद कर सकते है। हमारी इस वैबसाइट को एक बैकलिंक दे कर।
ReplyDeleteजी सादर।
Deleteपूरी रचना प्रकृति के लावण्य से ओतप्रोत और मनोहारी , प्रकृति के ऊपर इतनी सुंदर रचना रची आपने ,बहुत शुभाकामनाएं आपको कुसुम जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी मोहक, रचना को नये आयाम देती सुंदर प्रतिक्रिया से नव उर्जा का संचार हुआ ।
Deleteसस्नेह।
हीर कणों से शोभित अम्बर
ReplyDeleteज्यों सागर में दीपक जलते
टिम-टिम करती निहारिकाएं
क्षितिज रेख जा सपने पलते
चंद्रिका से ढकी वसुंधरा
चंद्र प्रभा की प्रीत लिखूं मैं।।//
नवल बिम्ब विधान और मोहक प्रतीकों से सुसज्जित अत्यन्त मधुर गीत प्रिय कुसुम बहन। ये आप की विशिष्ट काव्य प्रतिभा है। स्नेहिल शुभकामनायें और प्यार आपके लिए 👌👌🙏🌷🌷🌷🌷❤️
आपको मंच पर देख सदा ही मन प्रफुल्लित होता है रेणु बहन साथ ही आपकी विशिष्ट टिप्पणी हर रचनाकार के लिए विशेष सौगात होती है।
ReplyDeleteप्यारी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।