Thursday 30 September 2021

आज नया इक गीत लिखूँ


 आज नया इक गीत लिखूँ


गूँथ-गूँथ शब्दों की माला 

आज नया इक गीत लिखूँ मैं।।


वीणा का जो तार न झनके 

सरगम की धुन पंचम गाएँ

मन का कोई साज न खनके

नया मधुर सा राग सजाएँ

कुछ खग के कलरव मीठे से

पीहू का संगीत लिखूँ मैं।।


हीर कणों से शोभित अम्बर

ज्यों सागर में दीपक जलते

टिम-टिम करती निहारिकाएं

क्षितिज रेख जा सपने पलते

चंद्रिका से ढकी वसुंधरा

चंद्र प्रभा की प्रीत लिखूं मैं।।


मिहिका से अब निकल गया मन

धूप सुहानी निकल रही है

चटकन लागी चंद्र मल्लिका

नव दुल्हन का रूप मही है

मुखरित हो संगीत भोर का

तम पर रवि की जीत लिखूं मैं।।


             कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।

22 comments:

  1. वाह ! बहुत सुन्दर कुसुम जी !
    प्रसाद, पन्त और महादेवी की आप योग्य उत्तराधिकारी हैं.

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आपका सर ।
      मैं अभिभूत हूं ऐसी प्रशंसा से, अतिशयोक्ति ही सही पर सुखद।
      पुनः आभार।
      सादर।

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 01 अक्टूबर  2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है....  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार आपका।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

      Delete
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०२-१०-२०२१) को
    'रेत के रिश्ते' (चर्चा अंक-४२०५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार आपका।
      मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

      Delete
  4. मिहिका से अब निकल गया मन

    धूप सुहानी निकल रही है

    चटकन लागी चंद्र मल्लिका

    नव दुल्हन का रूप मही है

    मुखरित हो संगीत भोर का

    तम पर रवि की जीत लिखूं मैं।।
    बहुत सुंदर रचना,कुसुम दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  5. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  6. बहुत बहुत सुन्दर मधुर गीत

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

      Delete
  7. वाह , बहुत सुंदर रचना आदरणीय ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, उत्साह वर्धन करती सुंदर टिप्पणी।
      सादर।

      Delete
  8. मिहिका से अब निकल गया मन

    धूप सुहानी निकल रही है

    चटकन लागी चंद्र मल्लिका

    नव दुल्हन का रूप मही है

    मुखरित हो संगीत भोर का

    तम पर रवि की जीत लिखूं मैं।।
    वाह!!!
    मन में मोहक छटा बिखेरता लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      लेखन में सदा नव उर्जा भरती है आपकी प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

      Delete
  9. आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है। हमे उम्मीद है की आप आगे भी ऐसी ही जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे। हमने भी लोगो की मदद करने के लिए चोटी सी कोशिश की है। यह हमारी वैबसाइट है जिसमे हमने और हमारी टीम ने दिल्ली के बारे मे बताया है। और आगे भी इस Delhi Capital India वैबसाइट मे हम दिल्ली से संबन्धित जानकारी देते रहेंगे। आप हमारी मदद कर सकते है। हमारी इस वैबसाइट को एक बैकलिंक दे कर।

    ReplyDelete
  10. पूरी रचना प्रकृति के लावण्य से ओतप्रोत और मनोहारी , प्रकृति के ऊपर इतनी सुंदर रचना रची आपने ,बहुत शुभाकामनाएं आपको कुसुम जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी मोहक, रचना को नये आयाम देती सुंदर प्रतिक्रिया से नव उर्जा का संचार हुआ ।
      सस्नेह।

      Delete
  11. हीर कणों से शोभित अम्बर
    ज्यों सागर में दीपक जलते
    टिम-टिम करती निहारिकाएं
    क्षितिज रेख जा सपने पलते
    चंद्रिका से ढकी वसुंधरा
    चंद्र प्रभा की प्रीत लिखूं मैं।।//
    नवल बिम्ब विधान और मोहक प्रतीकों से सुसज्जित अत्यन्त मधुर गीत प्रिय कुसुम बहन। ये आप की विशिष्ट काव्य प्रतिभा है। स्नेहिल शुभकामनायें और प्यार आपके लिए 👌👌🙏🌷🌷🌷🌷❤️

    ReplyDelete
  12. आपको मंच पर देख सदा ही मन प्रफुल्लित होता है रेणु बहन साथ ही आपकी विशिष्ट टिप्पणी हर रचनाकार के लिए विशेष सौगात होती है।
    प्यारी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
    सस्नेह।

    ReplyDelete