Tuesday, 6 February 2024

निशा की ओर


अरविंद सवैया

निशा की ओर

ढलता  रवि साँझ हुई अब तो, किरणें पसरी चढ़ अंबर छोर।
हर कोण लगे भर मांग रहा, नव दुल्हन ज्यों मन भाव विभोर।
खग लौट रहे निज नीड़ दिशा, अँधियार भरे अब सर्व अघोर।
तन क्लांत चले निज गेह सभी, श्रम दूर करे अब श्रांन्ति अथोर।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

8 comments:

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    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सृजन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  2. वाह!!!
    कमाल का सृजन
    निशा काल का मोहक चित्र उतारा है
    लाजवाब 👌👌🙏🙏

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी स्नेह सिक्त मोहक प्रतिक्रिया मेरे लेखन की प्राण वायु है ।
      सस्नेह।

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  3. वाह .... बहुत सुन्दर सवैया ...
    कमाल की लेखनी आपकी ...

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  4. हृदय से आभार आपका आदरणीय आपकी प्रबुद्ध लेखनी से सराहना पाकर लेखन समर्थ हुआ।
    सादर।

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  5. बहुत खूबसूरत रचना

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