मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
रवि ने ओढ़ी आज रजाई
मुंह ढाप कर सोए।
कितने दिवस बाद कश्यप सुत
सुख सपने में खोए।
पोष मास में सूर्य देव जब
मकर राशि में आते
सरिता में नाहन होता है
पर्व मनाए जाते
त्याग शीत का भय भक्तों ने
पाप गंग में धोए।।
ठंडी ठंडी चले हवाएं
पादप पात गिराते
गुड़ तिल के मिष्ठान अनूठे
सभी चाव से खाते
तभी ठंड फिर करवट लेती
गंगा चीर भिगोए।
दान स्नान का लाभ कमाए
आस्था सह नर नारी
अलग-अलग प्रांतों में मनता
मेले लगते भारी
पुण्य मिले संक्रांति काल में
शुभ दाने जो बोए।
किया अगर शुचिता परिवर्तन
फिर क्यों भव-भव रोए।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर रचना |
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteवाह!!!!
ReplyDeleteमकर संक्रांति का महत्व एवं विधान
लाजवाब सृजन ।