Monday, 7 November 2022

मनोरम उषा काल


 मनोरम  उषा काल


सुरमई सी वादियों में

भोर ने संगीत गाया

खिल उठा गिरिराज का मन

हाथ में शिशु भानु आया।


खग विहग मधु रागिनी से

स्वागतम गाते रहे तब

हर दिशा गूँजारमय हो

झांझरे झनका रही अब

और वसुधा पर हवा ने

पुष्प का सौरभ बिछाया।।


उर्मियों का स्नेह पाकर

पद्म पद्माकर खिले हैं

भृंग मधु रस पान करते

कंठ कलियों से मिले हैं

हो रहे उन्मत्त से वो

मीत मधुरिम आज पाया।।


खुल गये नीरव भगाते

मंदिरों के द्वार सारे

नेह अंतर में समेटे

धेनु छौनों को दुलारे

धुन मधुर है घंटियों में

हर दिशा है ईश माया।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-11-2022) को  "गुरुनानक देव जी महाराज"  (चर्चा अंक-4607)  पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।

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  2. प्रकृति की सुंदरता को बखानती बहुत ही सुन्दर कविता!

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      रचना को आशीर्वाद मिला।
      सादर।

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  3. खिल उठा गिरिराज का मन

    हाथ में शिशु भानु आया।

    वाह!!!!

    नेह अंतर में समेटे

    धेनु छौनों को दुलारे

    धुन मधुर है घंटियों में

    हर दिशा है ईश माया।।
    लाजवाब ...
    बस लाजवाब👏👏
    ,🙏🙏

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  4. हृदय से आभार आपका सुधा जी।
    मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
    सस्नेह।

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