Monday, 28 March 2022

विपन्न


 विपन्न।


भूख है सुरसा मही पर 

व्याल ज्यों परिवेश में

दह रहा सिसकी समेटे

जीव कैसे क्लेश में।


नित्य बढ़ती जा रही है

द्वेष की ही आँधियाँ

हर दिशा बिखरी पड़ी हैं

मौत की ये व्याधियाँ

दैत्य भी अब तो छुपे हैं

नाम के अवधेश में।।


चाँद में रोटी झलकती

है रसिक सी व्यंजना

काव्य कब भरता उदर है

पीर बस अतिरंजना

दीन कब तक यूँ निहारे

रोटियाँ राकेश में।।


पेट को देने निवाला

उम्र बीते हर घड़ी

रोग का संताप गहरा

दुर्दिनों की है झड़ी

रोटियों की सिसकियों का

आह क्रंदन देश में।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

19 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर वर्तमान को अभिव्यक्त करती रचना।

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    1. जी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2022) को चर्चा मंच       "कटुक वचन मत बोलना"   (चर्चा अंक-4385)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      सादर।

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  3. मन द्रवित हो उठा कुसुम जी, बेहद भावपूर्ण रचना...आह कि...नित्य बढ़ती जा रही है

    द्वेष की ही आँधियाँ

    हर दिशा बिखरी पड़ी हैं

    मौत की ये व्याधियाँ

    दैत्य भी अब तो छुपे हैं

    नाम के अवधेश में।।...अद्भुत

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    1. रचना को समर्थन और स्नेह देने के लिए हृदय से आभार आपका अलकनंदा जी।
      सस्नेह।

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  4. वर्तमान हालात का मार्मिक चित्रण

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    1. जी हृदय से आभार आपका अनिता जी।
      उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  6. नित्य बढ़ती जा रही है

    द्वेष की ही आँधियाँ

    हर दिशा बिखरी पड़ी हैं

    मौत की ये व्याधियाँ

    दैत्य भी अब तो छुपे हैं

    नाम के अवधेश में।।

    सत्य उजागर करती सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय कुसुम जी,सादर नमन आपको

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    2. हृदय से आभार आपका कामिनी जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सदा नव ऊर्जा मिलती है।
      सस्नेह।

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  7. हृदय को द्रवित करता मर्मस्पर्शी सृजन ।

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    1. हृदय से आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सदा नव ऊर्जा मिलती है।
      सस्नेह।

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  8. दीन कब तक यूँ निहारे

    रोटियाँ राकेश में।। ..हृदय बेधती उत्कृष्ट रचना ।

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    1. बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  9. पेट को देने निवाला

    उम्र बीते हर घड़ी

    रोग का संताप गहरा

    दुर्दिनों की है झड़ी

    रोटियों की सिसकियों का

    आह क्रंदन देश में।।
    गरीबी भुखमरी और सामयिक सच को बयां करती बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना।

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    1. रचना के मर्म को समझने के लिए हृदय से आभार आपका सुधा जी।
      उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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