Tuesday, 1 February 2022

पराग और तितली


 पराग और तितली


चहुँकोना नव किसलय शोभित

हवा बसंती हृदय लुभाती

दिखे धरा का गात चम्पई

उर अंतर तक राग जगाती ।


ओ मतवारी चित्रपतंगः

सुंदर कितनी मन भावन हो

मंजुल मोहक रूप तुम्हारा

अद्भुत सी चित्त लुभावन हो 

माली फूलों के रखवाले 

तुम तो फूलों पर मदमाती।।


हो कितनी चंचल तुम रानी

कोई पकड़ नहीं पाता है

आँखों से काजल के जैसे

रस मधुर चुराना भाता है

ले लेती सौरभ सुमनों से 

फिर उड़के ओझल हो जाती।।


चार दिशा रज कुसुम विलसता

पूछे रमती ललिता प्यारी

थोड़ा-थोडा लेती हो सत

लोभी मनु से तुम हो न्यारी

पात-पात उड़ती रहती हो

घिरती साँझ न तुमको भाती।।


फूलों सी सुंदर हो तितली

फिर भी फूल तुम्हें भरमाते 

तेरी सुंदर काया में कब

इंद्रनील आभा भर जाते 

अजा बदलती रूप अनेकों

तुम किससे पावन वर पाती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

24 comments:

  1. प्रकृति के समीप ले जाती सुंदर रचना । तितली की सुंदरता को खूबसूरत शब्दों में बयाँ किया है ।

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय संगीता जी, आपकी उपस्थिति से सदा लेखन को संबल मिलता है।
      स्नेहिल उपस्थिति बनाए रखें।
      सादर सस्नेह।

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  2. प्राकृति और जीवन ... दोस्निं आशा के प्रतीक हैं ...
    बसंत की तैयारी है ... दोनों खिलेंगे ... सुन्दर रचना ...

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    1. हृदय से आभार आपका नासवा जी,आपकी सार्थक सक्रिय प्रतिक्रिया से लेखन गतिमान हुआ ।
      सादर।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (03-02-2022 ) को 'मोहक रूप बसन्ती छाया, फिर से अपने खेत में' (चर्चा अंक 4330) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. हृदय से आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए,मैं चर्चा में उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  4. प्रकृति के साथ तितली के क्रियाकलापों का सबक्ष्म वर्णन । मनभावन सृजन ।

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    1. हृदय से आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  5. कृपया *क्रियाकलापों का सूक्ष्म वर्णन* पढ़ें 🙏

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  6. एकदम फूल और तितली की तरह बहुत ही खूबसूरत सृजन....

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    1. हृदय से आभार आपका प्रिय मनीषा आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  7. बहुत सुन्दर वसंत-वर्णन !
    किन्तु
    फूल उदास-उदास हैं, तितलियाँ लुप्तप्राय हैं, बसन्ती बयार के स्थान पर बादलों की गर्जना है और ऊपर से बजट की मार है.
    यह कैसा वसंत है?

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    1. जी सर सही कहा आपने ,पर कवि लेखनी मौसमक्षका अनुराग लिख ही देती है ।
      हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  8. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. हृदय से आभार आपका आलोक जी ।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

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  9. वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
    मन शीतल हो गया।

    फूलों सी सुंदर हो तितली

    फिर भी फूल तुम्हें भरमाते

    तेरी सुंदर काया में कब

    इंद्रनील आभा भर जाते

    अजा बदलती रूप अनेकों

    तुम किससे पावन वर पाती।।... वाह!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रिय अनिता आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  10. इंद्रधनुषी रंगों वाली तितलियाँ

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  11. बहुत खूबसूरत

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी उत्साह वर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
      सस्नेह।

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  12. फूलों सी सुंदर हो तितली

    फिर भी फूल तुम्हें भरमाते

    तेरी सुंदर काया में कब

    इंद्रनील आभा भर जाते

    अजा बदलती रूप अनेकों

    तुम किससे पावन वर पाती
    बहुत ही मनमोहक एवं अद्भुत शब्दसंयोजन, लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।
      आपकी स्नेहिल टिप्पणी से रचना नव ऊर्जा से पल्लवित हुई ।
      सस्नेह।

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