Saturday, 25 December 2021

दिखावा

दिखावा


मुक्ता छोड़ अब हंस 

चुनते फिरते दाना

रंग शुभ्रा आड़ में

रहे काग यश पाना।


बजा रहे हैं डफली

सरगम गाते बिगड़ी

बोल देवता जैसे

जलती निज की सिगड़ी

झूठी राग अलापे

जैसे हूँ हूँ का गाना।।


चमक-दमक बाहर की

श्वेत वस्त्र मन काला

तिलक भाल चंदन का

हाथ झूठ की माला‌

मनके पर जुग बीता

खड़ा बैर का ताना।।


बिन पेंदी के लोटे 

सुबह शाम तक लुढ़के 

हाँ में हाँ करते हैं

काम कहो तो दुबके

छोड़ा बदला पहना 

श्र्लाघा का नित बाना।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

 

20 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी सादर आभार रचना को सम्मान देने के लिए।
      मैं पांच लिंक पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  2. बिन पेंदी के लोटे

    सुबह शाम तक लुढ़के

    हाँ में हाँ करते हैं

    काम कहो तो दुबके

    छोड़ा बदला पहना

    श्र्लाघा का नित बाना... वाह!क्या खूब कहा आदरणीय दी।
    एक दम खरा खरा।
    सादर

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    1. भावों को समर्थन देती मनभावन प्रतिक्रिया, प्रिय अनिता आप के स्नेह से रचना प्लावित हुई ।
      सस्नेह आभार आपका।

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  3. मुक्ता छोड़ अब हंस

    चुनते फिरते दाना

    रंग शुभ्रा आड़ में

    रहे काग यश पाना।

    कितनी सुंदर प्रस्तुति । मन बागबाग हो गया ।आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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    1. आपको पसंद आई रचना सार्थक हुई जिज्ञासा जी।
      स्नेहिल प्रतिक्रिया।
      सस्नेह आभार।

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  4. आज कल दिखावा करने वालों का ही बोलबाला है ।।
    सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति ।

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    1. सादर आभार संगीता जी आपकी प्रबुद्ध टिप्पणी से रचना प्रवाहित हुई।
      सादर सस्नेह।

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  5. बहुत खूब
    "बिन पेंदी के लोटे---"

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  6. यथार्थ,बहुत सुंदर लिखा है आपने🙏

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    1. हृदय से आभार आपका विश्व मोहन जी।
      आपकी उपस्थिति से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  8. बहुत सुंदर रचना

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  9. चमक-दमक बाहर की

    श्वेत वस्त्र मन काला

    तिलक भाल चंदन का

    हाथ झूठ की माला‌

    मनके पर जुग बीता

    खड़ा बैर का ताना।
    वाह!!!
    कमाल का सृजन...माज में फैले इस कटु सत्य काक्या खाका खींचा है आपने...वह भी नवगीत विधा में....
    बहुत ही लाजवाब👏👏👏👏

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    1. आत्मीय आभार आपका सुधा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया सदा अभिभूत कर देती है,और लेखनी उर्जावान होती है।
      सस्नेह।

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  10. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  11. आह कितना सच लिख दिए हो आप
    दिखावा ही तो शेष रह गया है।
    लाजवाब रचना।

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    1. जी ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धक रही।
      सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर आभार आपका।

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