Wednesday, 24 November 2021

ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की क्रांति





 





 ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की क्रांति

राजस्थान की जोधपुर रियासत जिसे मारवाड़ भी कहा जाता है, इसमें आठ ठिकाने थे जिनमें एक आउवा भी था. ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत पाली जिले के इसी आउवा के ठाकुर थे. इन्होने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जोधपुर रियासत और ब्रिटिश संयुक्त सेना को पराजित कर मारवाड़ में आजादी की अलख जगा दी थी.
उन्हीं वीर ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की अंग्रेज़ो के विरुद्ध 
क्रांति के कुछ दृश्य आल्हा छंद में समेटने का प्रयास।

 *ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की क्रांति।* 
आल्हा छंद में सृजन।

दोहा:-
जोधपुरी शासक रहे, तख्त सिंह था नाम।
हार मान अंग्रेज से, करे हजूरी काम।।१

एक ठिकाना आउवा, ठाकुर वीर कुशाल।
चम्पावत सरदार थे, कुशल प्रजा के पाल।।२

ठाकुर ने विद्रोह किया था,
जोधपुरी राजा के साथ।
राव बड़े छोटे कितने थे, 
आकर पकड़ा ठाकुर हाथ।।

ठोस बनाकर सेना टोली,
विद्रोही दलबल के संग।
ऊँचा रखते अपना अभिजन,
मान्य नही राजा का ढ़ंग।।

जागीर अधिप आ संग जुड़े,
औ दहका गोरा कप्तान।
जोधपुरी राजा की सेना,
आप बना था वो अगवान।।

संग विरोधी राजा ठाकुर,
राव कुशाल बने सरदार।
सेना दल बल लेकर आगे,
हाथ सुसज्जित थे हथियार।।

जोधपुरी सेना थी भारी, 
भारी अंग्रेजी हथियार।
झोंक उमंग भरे रजपूते,
मूंछें ताने थे मड़ियार।।

शीश किलंगी साफा छोड़ा, 
वीर पहन केसरिया पाग।
भाला, ढाल, कृपाण,खड़ग लें,
निकले खेलन जैसे फाग।।

हीथ करे सेना अगवानी,
राव कुशाल इधर सरदार।
दलबल ले दोनों सम्मुख थे,
क्रोध चढ़ा था पारावार।।

रक्त उबाल लिए रजपूते
विजुगुप्सा थी वक्ष अपार।
मर्दन करना था गोरों का
हाथ कृपाण हृदय में खार।।

बात अठारह सो सत्तावन,
एक हुई थी क्रांति महान।
रजपूते सामंतों ने मिल,
तोड़ी थी गोरों की बान।।

पाली अजमेरी सीमा पर,
युद्ध छिड़ा गोरों के साथ।
सैनिक मारे तोपे छीनी, 
पैट्रिक भागा  सिर ले हाथ।।

होश फिरंगी सेना के अब,
उड़ते आँधी में ज्यों पात।
आज दिखाते रण में कौशल,
हर योद्धा करता था घात।।

प्राण लिए हाथों में ठाकुर,
काल स्वरूप बना साक्षात।
एक प्रहार कटे सिर लुढ़के,
दूर गिरे जाकर के गात।।

दोहे:-
दृश्य दिखाई दे रहा, नृत्य करे ज्यों काल।
नर मुंड़ो से भू भरी, गली नहीं रिपु दाल।।१

काट मोंक का शीश फिर, बाँध अश्व की पीठ।
ठाकुर चलते शान से, दृश्य विकट अनडीठ।।२

मुंड कटा टांगा गढ़ पोळी,
उमड़ा आया पाली गाँव।
देख बड़ा गोरा अधिकारी,
आज अधर में उसकी ठाँव।।

हँसता कोई थूक घृणा से,
बच्चे पीट रहे थे थाल।
भीरु बने थे आज महारथ,
पीट रहे थे अपना गाल।।

गोरे भागे पग शीश धरे,
मूंछ मरोड़े थे मड़ियार।
गाँव नगर में मेला सजता,
हर्ष मनाए सब नर नार।।

एक पराजय से धधके थे,
शत्रु बने ज्यूँ जलती ज्वाल।
बदला लेने की ठानी फिर,
सोच रहे थे दुर्जन चाल।।

दुर्गति का हाल गया जल्दी, 
उच्च पदाधिकारियों पास।
लारेंस लिए सेना को निकला,
मोर्चा ले ब्यावर से खास।।

धावा बोला रजपूतों पर,
सिंह कुशाल सुनी ये बात।
टूट पड़े वो सेना लेकर,
दिखलानी गोरों को जात।।

युद्ध घमासानी विप्लव सा,
खेत रहे विद्रोही राव।
पर गोरों ने मुख की खाई,
हार करारी ताजा घाव।।

ये भी तो अंत नही होगा,
जान रहे थे योद्धा वीर ।
कूट ब्रितानी चलने वाले,
आगे कोई चाल अधीर ।।

दोहे:-
हार गये गोरे समर, राजा भी बल हीन।
पर ब्रितानिए लग रहे, जैसे कोई दीन।।१

एक वर्ष के बाद में, सैन्य लिए बहु ओर।
गोरों ने दलबल सहित, धावा बोला घोर।।२

ठाकुर राव सभी मिलकर के,
व्हूय रचेंगे एक अजेय ।
गोरों को पाठ पढ़ाना है,
सोच यही  सबका था धेय।।

विधना को स्वीकार नहीं था,
रचना हो जब तक संपूर्ण।
उससे पहले घात लगा कर
अंग्रेजों ने  फेंका तूर्ण।।

तीन महीने बीत रहे थे,
वर्ष नये की थी शुरुआत।
बहु छावनियों से ले सेना,
गोरों ने की मोटी घात।।

क्रांति महा के सामन्तों पर,
टूट किया आकस्मिक वार।
लूट खसोट मचाई भारी,
कर विस्फोट सुरंग अपार।।

सुगली देवी मूर्ति उठाई,
और मचाई भारी मार।
दो बारी की हार करारी,
बदला लेने की थी खार।।

वीर लड़े अंतिम सांसों तक,
एक भिडे थे बीस समान।
साधन थे परिमित लेकिन,
काँप रही गोरों की जान।।

रक्त पिपासु कृपानें बहती,
काट रही थी अरि के मुंड।
लेकिन शत्रु विशाल खड़ा था,
साथ दिखे फिर भारी झुंड़।।

गोला बारूद जटिल भारी,
और विशाल कटक के साथ।
अंग्रेजों ने फिर रण छेड़ा
मुठ्ठी भर रजपूत अकाथ।।

दोहे:-
कहते हैं दुर्भाग्य से, क्रांति हुई थी व्यर्थ।
पर ब्रितानियों के लिए, भारी ये प्रत्यर्थ।।१

रजपूताने में कभी, फिर न जमे थे पाँव।
गोरों का बस रह गया, एक अजमेर ठाँव।।२

वीर जुझारू थे कुशल, क्रांति कारी महान।
देश भलाई हित किया ,तन मन धन बलिदान।।३

रजपूते ये वीर थे, तीक्ष्ण तेज तलवार।
निज माटी सम्मान में,बही रक्त की धार।।४

 *कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'*

52 comments:

  1. आपकी लेखनी को नमन सखि

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    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ सखी।
      सस्नेह आभार।

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  2. बहुत सुन्दर थी सचमुच नमन करती हूं आपकी लेखनी को प्रणाम दी🙏🙏🙏🙏🙏

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    1. सस्नेह आभार आपका बहना,लेखन को स्नेह मिला ।
      सस्नेह।

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  3. अद्भुत, अनुपम सृजन👌👌👌👏👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹🌹

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  4. वाह अद्भुत सृजन सखी 👌👌👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  5. शानदार लेखन 👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  6. वाह अप्रतिम

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  7. Salute to The Unsung Heroes ~ Thakur Kushal singh Champawat ~ Thakur of prominent thikana of Auwa in Jodhpur state who took up the initial resistance battle against the British and restricted their advances.







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    1. अति सुंदर, आल्हा छंद का समुचित उपयोग ❤️
      दीदी, आपकी लेखनी सच में बोलती है, वीणा के तारों सी, सुरमयी, भावमयी, व्यंजनामयी! 🙏🏼

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    2. बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ ।
      सादर।

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    3. सस्नेह आभार बहना आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  8. बहुत ही सुंदर और ओजपूर्ण 👌🙏

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  9. वीररस भाव का सशक्त प्रयोग । अति सुन्दर सृजन ... आपका लेखन कौशल बेमिसाल है । अनुपम और ओजस्वी भावों से सजा सुन्दर ऐतिहासिक प्रसंग ।

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    1. आपकी सार्थक व्याख्या और स्नेह से रचना को नव आयाम मिले।
      सस्नेह आभार मीना जी।

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  10. अनुपम भाव लिए अद्भुत लेखन। बधाई

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    1. उत्साह वर्धन हुआ,बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  11. वाह
    लेखनी अदभुत गढ़ रही अदभुत वीरोंचित भाव
    सखी री पढ़ मन मुग्ध हो गया लेखन को प्रणाम ॥

    डा इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीता लेखन सार्थक हुआ,आपका स्नेह मिला।
      सस्नेह।

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  12. वीर रस में डूबी चम्पावत की राजपूतानी वीरता को बखान करती सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से।
      सस्नेह।

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  13. वीर धरा की लाड़ली , कलम चलायी आज
    वीरा रो कर मान अमर , हुयी लेखनी आज

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    1. नमस्कार,आपका आशीर्वाद मिला, आपको लेखन पसंद आया
      रचना सार्थक हुई ।
      सादर आभार आपका आदरणीय ।

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    2. नमस्ते सर,आपका लिखा हुआ साहित्य कहां पढ़ सकती हूं,कृपया मार्गदर्शन करें।

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  14. वीर रस से ओतप्रोत लेखन,शब्द शब्द तलवार की धार
    राजपूतानी वीरता और बलिदान का
    लाज़बाब वर्णन किया है।नमन आपकी लेखनी को, प्रिय कुसुम,मां सरस्वती का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ हो
    आपकी दी।

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    1. दी आपका छलकता स्नेह मिला ,आपकी मोहक विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह,सादर आभार दी।

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  15. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ नवंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ,रचना पाँचलिंक पर शामिल हो कर स्वयं मान पा गई।
      सस्नेह सादर।

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  16. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.11.2021 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4260 में दिया जाएगा
    धन्यवाद
    दिलबाग

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लेखन सार्थक हुआ, चर्चा मंच पर रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
      सादर।

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  17. बहुत बढ़िया

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    1. जी हृदय से आभार आपका आपने रचना को समय दिया।
      सादर।

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  18. कितना इतिहास अनभिज्ञ है । वीर रस में डूबी आपकी कलम से उजागर हुआ ।।पढ़ कर जोश भर गया । सुंदर रचना ।

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    1. जी संगीता जी सही में बहुत कुछ छुपा है या अनदेखा रह गया।
      आपका स्नेह पाकर लेखन प्रवाहमान हुआ ।
      सादर आभार आपका।

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  19. सराहना से परे जीवंत रचना प्रिय कुसुम बहन। इतिहास के पन्नों से उतार मानों संपूर्ण घटनाक्रम को आपने शब्दों में ज्यों का त्यों ही पिरो दिया। ऐसे प्रसंगों से आप जैसे जिज्ञासु जन ही वाकिफ हैं। इस जोशीली रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको। आपकी कलम का ये ओज सदैव बना रहे , यही शुभकामना है।🙏🙏🌷🌷❤️❤️

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    1. मैं अभिभूत हूँ रेणु बहन आपकी अनेकांत सोच से सदा लेखन को एक नया ही स्वरूप मिलता है।
      बहुत बहुत आभार आपका आपने गहनता से पढ़ कर सुंदर सार्थक विचार रखे।
      हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  20. This comment has been removed by the author.

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  21. राजपूतों की अगणित शौर्य गाथाएं यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है। युद्ध में विजय या पराजय नहीं अपनी अस्मिता हेतु लड़ना जरुरी होता है। वीर कुशाल सिंह जी के अपने मुठ्ठी भर सैनिकों के साथ आत्मसम्मान के लिए संघर्ष का ये सशब्द वर्णन पढ़कर निशब्द हूं बहना। राजपूत कौम का दुर्भाग्य रहा कि वे कभी एक ना हो सके। चंद राजपूत शासकों के अलावा ज्यादातर भोगी, विलासी और अकर्मण्य ही रहे। यही कारण रहा कि कुशाल सिंह जैसे पराक्रमी यौद्धा भी रणभूमि में खेत रहे। दूसरे ब्रितानी सेना के पास गोला-बारूद जैसे आधुनिक मारक संसाधनों के आगे पैदल सेना कैसे ज्यादा देर तक ठहर सकती थी।। फिर भी कुशाल सिंह और उनके जैसे अन्य स्वामिभक्त सेनापतियों ने अपनी वीरता से राजस्थान की भूमि को गौरवान्वित किया है। ऐसे रणबांकुरों को कोटि नमन । आपने बहुत ही सुंदर विरुदावली रची है एक वीर के नाम। ऐसी रचनाएँ समर्पण और श्रम मांगती हैं । आपने बहुत तन्मयता और शोध के बाद लिखा है ये बात पता चलती है। आपका पुनः आभार और अभिनंदन 🙏🙏🌷🌷❤️❤️

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    1. आपकी सुंदर, सारगर्भित सराहना संपन्न प्रतिक्रिया को नमन प्रिय रेणु जी 💐🙏

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    2. बहुत सही रेणु बहन सचमुच घटना क्रम इसी तरह रहा होगा ,ये निश्चित है कि इस शुरुआत की क्रांति से अंग्रेजों में राजपूतानों को लेकर भय जरूर बैठ गया पूरे भारत में राजस्थान में ही उनकी पकड़ कमजोर रही बस बहुत कम ठिकाने ही बना पाये थे।
      बहुत प्रतिबद्धता आपकी हर लेखन के प्रति मुझे सदा प्रभावित करती है।
      सस्नेह आभार आपका।

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  22. आपकी लाजवाब सृजन की जितनी सराहना की जाय कम है। रेणु जी को प्रतिक्रिया से सौ प्रतिशत सहमत हूं। आपको इस सराहनीय रचना के लिए कोटि कोटि बधाई

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना का मान बढ़ा।
      सस्नेह।

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    2. सही आंकलन जिज्ञासा जी मैं सहमत हूं आपसे।
      सस्नेह।

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  23. राजपूतों के इतिहास की गाथा उतारी दी है आपने ...
    बहुत मुश्किल होता है इतिहास रचनाओं में बाँधना इमानदारी के साथ पर आपकी कुशल कलम ने ये कार्य भी इमानदारी से किया है ... बहुत बहुत बधाई आपको ...

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    1. आपकी गहन अवलोकन से निकली प्रतिक्रिया से रचना अपना पूर्ण मान पा गई , लेखन और लेखनी दोनों सार्थक हुए।
      सादर आभार आपका।

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  24. जी स्नेह मिला रचना को सादर आभार आपका।

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  25. इतिहास में अमिट हो गई ठाकुर कुशाल सिंह की गाथा

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