नवगीत मेरा।
कल्पना और कल्पक
कुछ छुपे अध्याय भी है
कह रही है रात ढलती।
क्यों तमस की कालिमा में
भोर की है आस पलती।
नील आँगन खेलते हैं
ऋक्ष अंबक टिमटिमाते
क्षीर की मंदाकिनी में
स्नान करके झिलमिलाते
चन्द्र भभका आग जैसे
चाँदनी दिखती पिघलती।।
कल्पना कविता बने तो
क्या नहीं कुछ हो सकेगा
सूर्य भी करवट बदलता
रात शय्या सो सकेगा
स्वर्ण काया पर सुनहरी
धूप की बाँहें मचलती ।।
औघड़ी है रात रानी
जाग के सौरभ लुटाती
भोर लाली टोहती तो
स्वागतम पाँखें बिछाती
देह से आभूषणों को
ज्यों विरह में वो अहलती ।।
अहलती =हिलना.
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
प्रकृति और मानव मन कितनी खूबसूरती से अपने मोहपाश में बांध लेते हैं,उसका अनुपम उदाहरण है आपका ये उत्कृष्ट सृजन । बहुत सुंदर मनभावन कविता ।
ReplyDeleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदा मेरे लेखन को नई ऊर्जा मिलती है जिज्ञासा जी ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
उत्कृष्ट सृजन सदा की भांति प्रिय कुसुम
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका प्रिय दी।
Deleteबस आपका आशीर्वाद मिलता रहे।
सादर सस्नेह।
क्यों तमस की कालिमा में
ReplyDeleteभोर की है आस पलती।
वाह!!!
चन्द्र भभका आग जैसे
चाँदनी दिखती पिघलती।।
अद्भुत एवं लाजवाब नवगीत...
आपकी नवगीतों में बिम्ब आश्चर्य चकित करते हों कुसुम जी!
लाजवाब लेखन हेतु बधाई एवं शुभकामनाएं ।
आपने सराहा सुधा जी आपकी विहंगम दृष्टि से काव्य सदा नये प्रतिमान पाता है।
Deleteबहुत बहुत सा आभार।
सस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर मधुर गीत |
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी ।
Deleteब्लॉग पर आपकी उपस्थिति सदा उत्साहवर्धन करती है।
आप विदुषी हैं कुसुम जी। कल्पना कविता बने तो क्या नहीं कुछ हो सकेगा। कुछकुछ समझ रहा हूं मैं इस काव्य-रचना के भाव को। इसे पूर्णतः आत्मसात् करने का प्रयास करूंगा।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका,आपकी प्रशंसा में अतिशयोक्ति ही सही मन भावन है जितेंद्र जी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका ।
सादर।
बहुत सुंदर नवगीत है। उत्कृष्ट सृजन के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका विरेंद्र जी, नवगीत को नवगीत प्रबुद्ध जन मानले तो लेखन सार्थक समझती हूं।
Deleteसादर।
सुंदर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
वाह!वाह!गज़ब दी 👌
ReplyDeleteन जाने कितनी ही बार पढ़ा आपका यह नवगीत हर बार नया सा लगा।
सराहना से परे।
सादर
बहुत बहुत सा आभार आपका अनिता,आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई,और उत्साहवर्धन भी।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर रचना... पहला छन्द बहुत ही सुन्दर! बहुत अच्छा लिख गई हैं कुसुम जी आप 👍!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना प्रवाहित हुई।
Deleteसादर।
सुन्दर सृजन , बहुत शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका दीपक जी उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर रचना, नवबिम्ब बिम्बित...
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर बिम्ब, बेहद खूबसूरत नवगीत सखी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना गतिमान हुई।
Deleteसस्नेह।
अत्यन्त सुन्दरतम काव्य शिल्प । प्रगाढ़ भावों का मुखर प्रस्फुटन । अति सुन्दर कृति के लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अमृता जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया ने रचना को नये आयाम दिये।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
सुंदर रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी चर्चा पर अपनी रचना को देखना सदा सुखद लगता है।
ReplyDeleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।