अँधों के शहर आइना बेचने
फिर से आज एक कमाल करने आया हूँ
अँधों के शहर में आइना बेचने आया हूँ।
सँवर कर सूरत तो देखी कितनी मर्तबा शीशे में
आज बीमार सीरत का जलवा दिखाने आया हूँ।
जिन्हें ख़्याल तक नही आदमियत का।
उनकी अकबरी का परदा उठाने आया हूँ।
वो कलमा पढते रहे अत्फ़ ओ भल मानसी का।
उन के दिल की कालिख़ का हिसाब लेने आया हूँ।
करते रहे उपचार किस्मत-ए-दयार का
उन अलीमगरों का लिलार बाँचने आया हूँ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
अकबरी=महानता अत्फ़=दया
किस्मत ए दयार= लोगो का भाग्य
अलीमगरों = बुद्धिमान
लिलार =ललाट(भाग्य)
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteलाजवाब अल्फ़ाज़
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 25 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय मेरी रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteसादर
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका।
Deleteसादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-१२-२०२०) को 'यादें' (चर्चा अंक- ३९२७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए ।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteसादर आभार आपका।
Deleteसुन्दर अल्फाजों से लबरेज़ सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
बहुत खूब ... सच के करीब सभी शेर ...
ReplyDeleteउम्दा ...
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
बेहतरीन ! आने वाला समय आपके और आपके सपूर्ण परिवार के लिए मंगलमात हो
ReplyDeleteशुभकामनाओं का आत्मीय आभार ,आपको भी सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteसादर आभार।
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय।
Deleteजबरदस्त अल्फाज , बहुत खूब कही हकीकत का आईना, अंधों के शहर में, नमन खूबसूरत
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
यहाँ हुस्न खुद बेताब है जलवे दिखाने के लिए फिर क्या कहना ....
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