सुन मनुज
कदम जब रुकने लगे
तो मन की बस आवाज सुन
गर तुझे बनाया विधाता ने
श्रेष्ठ कृति संसार में तो
कुछ सृजन करने होंगें
तुझ को विश्व उत्थान में
बन अभियंता करने होंगें नव निर्माण
निज दायित्व को पहचान तू
कैद है गर भोर उजली
हरो तम बनो सूर्य
अपना तेज पहचानो
विघटन नही जोडना है तेरा काम
हीरे को तलाशना हो तो
कोयले से परहेज भला कैसे करोगे
आत्म ज्ञानी बनो आत्म केन्द्रित नही
पर अस्तित्व को जानो
अनेकांत का विशाल मार्ग पहचानो
जियो और जीने दो,
मै ही सत्य हूं ये हठ है
हठ योग से मानवता का
विध्वंस निश्चित है
समता और संयम
दो सुंदर हथियार है
तेरे पास बस उपयोग कर
कदम रूकने से पहले
फिर चल पड़।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत ही सुंदर !
ReplyDeleteमानवीय कर्मठता का आह्वान करता अत्यंत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteहीरे को तलाशना हो तो
ReplyDeleteकोयले से परहेज भला कैसे करोगे
आत्म ज्ञानी बनो आत्म केन्द्रित नही
समता और संयम रूपी हथियारों का उपयोग टरके प्रगति पथ पर अग्रसर होने की सीख देती बहुत ही लाजवाब अभिव्यक्ति....
वाह!!!
हर मन की आवाज यही हो । सुंदर कृति ।
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