Friday, 29 May 2020

शमा और शलभ

शमा और शलभ

आवाज दी शमा ने सुन शलभ
तूं क्यों नाहक जलता है।
मेरी तो नियति ही जलना ,
तूं क्यों मुझसे लिपटता है  ।
         
शलभ बोला आह भरके,
तेरी नियति मेरी फितरत
जलना दोनो की ही किस्मत
तूं  तो  जलती रहती है ,
मैं तुझ से पहले बुझ जाता हूं।
 
कहा शमा ने ओ परवाने
तूं नाहक ही जलता है।
मैं तो जलती जग रौशन करने,
तूं दुनिया को क्या देता?
बस नाहक जल-जल मरता है ।

तू जलती जग के खातिर जग तुझ को क्या देता,
जब खुद को खो देती हो बस
काला धब्बा रहता,
मेरे फना होते ही हवा मेरे पंख ले जाती है
रहती नही मेरे जलने की भी कोई निशानी
बस इतनी सी ही मेरी तेरी कहानी है।

            कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

5 comments:

  1. शमा और शलभ की सुन्दर वार्ता । बेहद खूबसूरत सृजन कुसुम जी ।

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  2. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
    पत्रकारिता दिवस की बधाई हो।

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  3. अहा दी अति सुंदर।
    आत्मोत्सर्ग का आनंद भी अद्वितीय ह़ सकता है।

    मेरे फना होते ही हवा मेरे पंख ले जाती है
    रहती नही मेरे जलने की भी कोई निशानी
    बेहतरीन पंक्तियाँ दी।

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  4. बहुत सुंदर दर्शन को समेटता शमा-शलभ संवाद।

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  5. शलभ के समर्पण का मार्मिक शब्द चित्रण आदरणीय दीदी.
    सादर

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