Friday, 3 April 2020

"पलाश "प्रेम के हरे रहने तक

प्रेम के हरे रहने तक

पलाश का मौसम अब आने को है।
जब खिलने लगे पलाश
संजो लेना आंखों में।
सजा रखना हृदय तल में
फिर सूरज कभी ना डूबने देना।
चाहतों के पलाश को
बस यूं ही खिले-खिले रखना।
हरी रहेगी अरमानों की बगिया
प्रेम के हरे रहने तक।

           कुसुम कोठारी ।

9 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ६ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. स्नेहिल आभार आपका ।
      मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।

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  2. बहुत सुंदर कुसुम जी। ईश्वर आपका प्रेम सदा हरा रखे।

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    1. स्नेहिल आभार सखी जी ।

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  3. बहुत ही सुंदर सृजन कुसुम जी ,सादर नमन आपको

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
      सस्नेह।

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  4. बेहद खूबसूरत रचना सखी

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  5. प्रेम हरा रहेगा तो पलाश भी ख‍िलेगा कुसुम जी , बहुत पॉज‍िट‍िवनेस है आपकी रचना में

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