Sunday, 8 December 2019

कुंडलियां छंद। नेता

कुंडलिया छंद

नेता।

नेता कुर्सी पूजते, जैसे चारों धाम
जनता ऐसे पिस रही,भली करें अब राम
भली करे अब राम,  कि कैसा कलयुग आया
नैतिकता मझधार ,  सभी को स्वार्थ सुहाया
न्योछावर कर प्राण , परमार्थ जीवन देता ।
दिखते नही अब तो  , कहीं भी ऐसे नेता।

कुसुम कोठारी।

6 comments:

  1. वाह दी मस्त लिखा है।
    नयी विधा की सुंदर कृति बधाई आपको।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ....... ,.....11 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. वाह !वाह !आदरणीया दीदी जी बेहतरीन
    सादर

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  4. वाह!!!
    लाजवाब कुण्डलियाँ।

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  5. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13 -12-2019 ) को " प्याज बिना स्वाद कहां रे ! "(चर्चा अंक-3548) पर भी होगी

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का

    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है 
    ….
    अनीता लागुरी"अनु"

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