Thursday, 3 October 2019

जीवन यवनिका

एक यवनिका गिरने को है,
जो सोने सा दिख रहा वो
अब माटी का ढेर होने को है,
लम्बे सफर पर चल पङा
नींद गहरी सोने को है।
एक यवनिका .....।.
जो समझा था सरुप अपना
वो सरुप अब खोने को है,
अब जल्दी से उस घर जाना
जहाँ देह नही सिर्फ़ रूह है।
एक यवनिका ....
डाल डाल जो फूदक रहा
वो पंक्षी कितना भोला है, 
घात लगाये बैठा बहेलिया
किसी पल बिंध जाना है ।
एक यवनिका .....
जो था खोया रंगरलियों में
राग मोह में फसा हुवा ,
मेरा-मेरा कर जो मोहपास में बंधा हुवा
आज अपनो के हाथों भस्म अग्नि में होने को है ।
एक यवनिका  ......

           कुसुम कोठारी ।

9 comments:

  1. एक यवनिका गिरने को है,
    जो सोने सा दिख रहा वो
    अब माटी का ढेर होने को है,
    वाह!!! बहुत खूब !!!
    जीवन की क्षणभंगुरता पर सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत खूब सुंदर विश्लेषण किया आपने कम शब्दों में पूर्ण।
      सस्नेह आभार आपका।

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  2. बेहद खूबसूरती से क्षण भंगुर जीवन बताया ,बधाई

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    1. जी बहुत सा आभार सखी उत्साह वर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  3. बेहद खूबसूरत रचना

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  4. मेरा-मेरा कर जो मोहपास में बंधा हुवा
    आज अपनो के हाथों भस्म अग्नि में होने को है ।
    एक यवनिका ...... बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति सखी 🌹

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है सखी बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  5. जी बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।

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