Saturday, 14 September 2019

जगत और जीवात्मा

जगत और जीवात्मा

ओ गगन के चंद्रमा मैं शुभ्र ज्योत्सना तेरी हूं,
तूं आकाश भाल विराजित मैं धरा तक फैली हूं।

ओ अक्षूण भास्कर मैं तेरी उज्ज्वल  प्रभा हूं,
तूं विस्तृत नभ में आच्छादित मैं तेरी प्रतिछाया हूं‌।

ओ घटा के मेघ शयामल मैं तेरी जल धार हूं,
तूं धरा की प्यास हर, मैं तेरा तृप्त अनुराग हूं ।

ओ सागर अन्तर तल गहरे मैं तेरा विस्तार हूं,
तूं घोर रोर प्रभंजन है, मै तेरा अगाध उत्थान हूं।

ओ मधुबन के हर सिंगार, मै तेरा रंग गुलनार हूं,
तूं मोहनी माया सा है मैं निर्मल बासंती बयार हूं।

             कुसुम कोठारी।

14 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत रचना। बहुत बहुत बधाई इस शानदार सृजन के लिए 💐💐💐

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    1. सखी बहुत सा आभार आपका शानदार प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  2. वाह सखी अद्भुत लेखन.. बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌👏👏🌹

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    1. बहुत बहुत आभार सखी। आपकी सराहना से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " सोमवार 16 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत सा आभार मीना जी मुखरित मौन में मेरी रचना को रखने के लिए बहुत बहुत आभार।
    सादर सस्नेह।

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  5. ओ मधुबन के हर सिंगार, मै तेरा रंग गुलनार हूं,
    तूं मोहनी माया सा है मैं निर्मल बासंती बयार हूं।

    बहुत ही मनमोहक रचना ,सादर नमस्कार कुसुम जी

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    1. बहुत बहुत आभार कामिनी जी सस्नेह अभिवादन आपको फिर सक्रिय देख मन को सुकून मिला आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई ।
      सस्नेह आभार आपका।

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  6. प्राकृति के कितने ही रंग समेट लिए है आज इस रचना में आपने ...
    बहुत ही कमाल की रचना है ...

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    1. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार आपका आदरणीय नासवा जी।
      सादर।

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  7. वाह आदरणीया दीदी जी मनमोहक,बहुत सुंदर पंक्तियाँ 👌👌👌

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    1. बहुत बहुत स्नेह आभार प्रिय आंचल।

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  8. ओ अक्षूण भास्कर मैं तेरी उज्ज्वल प्रभा हूं,
    तूं विस्तृत नभ में आच्छादित मैं तेरी प्रतिछाया हूं‌।
    ओ घटा के मेघ शयामल मैं तेरी जल धार हूं,
    तूं धरा की प्यास हर, मैं तेरा तृप्त अनुराग हूं ।
    बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन !!!!!!!!!!!!

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  9. सस्नेह आभार प्रिय रेणु बहन आपका अनुपम स्नेह सदा अक्षुण्ण रहे ।
    सस्नेह।

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