Monday, 5 August 2019

रश्मियों से ख्वाब

मैं चुनती रही रश्मियां बिना आहट रात भर ,
करीने से सजाती रही एक पर एक धर ,
संजोया उन्हें कितने प्यार से हाथों में,
रख दूंगी धर के कांच के मर्तबान  में ,
सपना देखती रही रातों में जाग-जाग के ,
सजाती संवारती रही उनसे आंगन मन के ,
कितनी गोरी दुलारी दुधिया न्यारी-न्यारी,
पेड़ो की शाख से चुन-चुन के संवारी,
भोर का उजाला चुपके-चुपके आया ,
मेरी संकलित रश्मियों के मन भाया,
वे धीरे से जा समाई भोर के आंचल में ,
रश्मियों का साथ था  दिवस के उजास में ,
सूरज कहां कब अकेला है ज्योति देता
कितने सपनों का प्रकाश है उसमें रहता ।

कुसुम कोठारी।

21 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मंगलवार 06 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार सांध्य दैनिक में मेरी रचना लेने के लिए।

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  2. दी बहुत खूबसूरत रचना और संदेश भी लाज़वाब है।
    शब्द प्रयोग लुभावने हैं।

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    1. बहुत बहुत स्नेह आभार श्वेता रचना को समर्थन मिला आपकी प्रतिक्रिया का सदा इंतजार रखता है ।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 7 अगस्त 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. ढेर सा आभार प्रिय पम्मी जी । पांच लिंको में आना सदा गोरान्वित करता है।
      आपकी स्नेह दृष्टि का तहेदिल से शुक्रिया।

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  4. प्रिय कुसुम बहन , रश्मियों से गुंथे ख़ाब बहुत मनभावन हैं | मनमोहक काव्य चित्र में मन के सरल सहज स्वप्निल भावों को बहुत ही करीने से संजोया आपने | सुबह के उजास में इन रश्मियों का समा जाना सृजन के विस्तार का प्रतीक है | सस्नेह

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    1. आपको देख मन हर्षान्वित हुआ रेणु बहन, साथ ही इतनी शानदार सराहना मिली आपके एक एक बोल रचना को सार्थक गति प्रदान करता सा है ।
      आपका स्नेह सदा उत्साह बढ़ाया है ।
      सस्नेह।

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  5. बहोत प्यारी रचना

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    1. जी सादर आभार आपका सराहना मिली।
      मेरे ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका ।

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  6. भोर का उजाला चुपके-चुपके आया ,
    मेरी संकलित रश्मियां के मन भाया,
    वे धीरे से जा समाई भोर के आंचल में , बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌

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  7. सूरज कहां कब अकेला है ज्योति देता
    कितने सपनों का प्रकाश है उसमें रहता ।
    बहुत ही सुन्दर मनभावनी सार्थक प्रस्तुति...

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  8. सूरज कहां कब अकेला है ज्योति देता
    कितने सपनों का प्रकाश है उसमें रहता।
    वा व्व...कुसुम दी, क्या कहने...सूरज की रोशनी में सपनों का प्रकाश...बहुत सुंदर कल्पना।

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  9. वाह सुन्दर प्रस्तुति

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  10. बहुत ही सुंदर रचना

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  11. प्रकाश उम्मीद से भरा होता है ... दिशा और दूर तक देखना प्रकाश से ही संभव हो पता है ... ये रश्मियाँ जीवन में आशा ले कर आती हैं ...

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  12. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-08-2019) को "देशप्रेम का दीप जलेगा, एक समान विधान से" (चर्चा अंक- 3431) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  13. वाह...... बहुत सुन्दर रचना !

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  14. वाह बेहतरीन रचना

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