Thursday, 29 August 2019

चाॉ॓द कटोरा

.          चांद कटोरा

चंचल किरणें  शशि की
झांक रही थी पत्तियों से ,
उतर आई अब मेरे आंगन ,
जी करता इनसे अंजलि भर लूं
या  फिर थाली भर-भर रख लूं ,
सजाऊं घर अपना इन रजत रश्मियों से ,
ये विश्व सजाती ,मन को भाती
धरा पे बिखरी - बिखरी जाती
खेतों, खलिहानों ,पनघट , राहें ,
दोराहे , छत , छज्जे ,पेड़, पौधे
वन-उपवन डोलती फिरती
ये चपल चंद्रिकाऐं बस अंधेरों से खेलती ,
पूर्व में लाली फैलने से पहले 
लौट जाती अपने चॅ॔दा के पास
सिमटती एक कटोरे में चाॅ॔द कटोरे में ।

             कुसुम कोठारी ।

13 comments:

  1. वह क्या शब्द सज्जा है और क्या संयोजन है | अलहदा उम्दा और कमाल है

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सा आभार आपका आदरणीय अजय कुमार जी।
      आपकी सराहना से रचना को पारितोष मिला।
      बहुत सुंदर प्रतिक्रिया।
      मनभावन।

      Delete
  2. बेहतरीन और लाजवाब सृजन कुसुम जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आपका मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को आयाम मिले ।
      ढेर सारा स्नेह।

      Delete
  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,कुसुम दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन ।

      Delete
  4. प्रिय कुसुम बहन प्रकृतिवादी कवियों की रचनाओं का स्मरण कराती आपकी ये रचना में चांदनी रात का सुंदर काव्य चित्र है जो प्रक्रति प्रेमी मन के उन्मुक्त उदगार हैं | सस्नेह शुभकामनायें इस जगमग चाँद कटोरे के नाम | सस्नेह

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रिय रेणु बहन आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया लेखन में नव जीवन डाल देती है ।
      आपने सच समझा मैं सचमुच छाया वाली प्रकृति प्रेरक कवियों की प्रशंसक हूं।
      सस्नेह आभार ।

      Delete
  5. लाज़बाब रचना प्रिय कुसुम।

    ReplyDelete
    Replies
    1. दी आपका आशीर्वाद मिला तो रचना स्वतः धन्य हुई।
      सादर सस्नेह।

      Delete

  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-08-2019) को " लिख दो ! कुछ शब्द " (चर्चा अंक- 3444) पर भी होगी।

    ---
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  7. bahut pyaari rchnaaa hui he

    bdhaayi swikaaren..aur yuhin pyaari rchnaao se...khoobsurti bikhrati rahen

    ReplyDelete
  8. जी करता इनसे अंजलि भर लूं
    या फिर थाली भर-भर रख लूं ,
    सजाऊं घर अपना इन रजत रश्मियों से , बेहद खूबसूरत रचना सखी

    ReplyDelete