Tuesday, 18 June 2019

रानी लक्ष्मी बाई

वीरांगणा रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर कोटिशः नमन। 🙏

देश का गौरव
वीर शिरोधार्य थी।

द्रुत गति हवा सी
चलती तेज धार थी।

काट कर शीश
दुश्मनों का संहार थी।

आजादी का जूनून
हर और हुंकार थी।

वीरांगणा गजब
पवन अश्व सवार थी।

दुश्मनों को धूल चटाती
हिम्मत की पतवार थी।

मुंड खच काटती
दुधारी तलवार थी।

रूकी नही झुकी नही
तेज चपल वार थी।

कुसुम कोठारी

16 comments:

  1. महारानी लक्ष्मी बाई को शत -शत नमन

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    1. जी सादर आभार आपका प्रोत्साहन के लिए

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  2. बहुत सुंदर। नमन महारानी लक्ष्मी बाई को 🙏🙏

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रोत्साहन के लिए

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  3. आपकी लिखी रचना "पाँच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 20 जून 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार पांच लिंकों के लिए रचना चयन हेतु
      सादर।

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    2. आदरणीया क्षमा करिये ! मेरे विचार से आपको लिखते हुए काफी समय हो चला है। केवल आप ही नहीं, यहाँ बहुत से लोग हैं जो हठधर्मिता का प्रदर्शन कर रहे हैं।
      चलिए छोड़िये बातों में क्या रखा है। थोड़ा अपनी मूलभूत ग़लतियों पर नज़र डालें ! अगर नहीं सुधारना चाहतीं तो इसमें मुझे कोई विशेष आपत्ति नहीं। शर्म तो मुझे आने लगी है इन टिप्पणी करने वालों पर, जो साहित्य के नाम पर, एक गन्दा मज़ाक लोगों के साथ करने लगे हैं। ख़ैर ,
      अपनी त्रुटियाँ देखें !
      १. हवा सी ऐसे लिखें ! हवा-सी
      २. काट कर एक साथ लिखें ! यदि अलग़-अलग़ लिखेंगी तो इसका अर्थ निम्न होगा ! जैसे काट = विकल्प , कर = हाथ अतः इसे एक साथ काटकर लिखें !
      ३. आजादी में नुक़्ता लगाएं ! जैसे - आज़ादी
      ४. गजब में नुक़्ता लगायें ! जैसे गज़ब
      ५. यहाँ दुधारी मतलब क्या होगा स्पष्ट करें ! दुधारी पशुओं को कहा जाता है परन्तु आपने तलवार को दुधारी कहा है। अब बताइये कि यह शब्द आपने हिंदी के किस शब्दकोष से लिया है जिसे मैंने नहीं पढ़ा ?
      ६. रूकी नही झुकी नही आपने निरंतर लिखा है। क्या आप यहाँ विराम नहीं लेंगी ! आप स्वयं एक बार पढ़कर देखिये ! रूकी नही ,झुकी नही ( ,)
      अब आप स्वयं मंथन करिये कि, लम्बे समयाअवधि की लेखनी में आपने अभी तक हिंदी व्याकरण का ज्ञान भी ठीक से अर्जित नहीं किया। जो कि हिंदी भाषा की आत्मा है। कटु शब्दों हेतु क्षमा परन्तु सत्य ! सादर

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    3. नमस्कार आदरणीय ध्रुव जी।
      ब्लॉग पर स्वागत है आपका,
      आप ने सही कहा मुझे लिखते हुवे तकरीबन चार साल हो गए और मैं एक बहुत ही साधारण बुद्धि वाली एक अति साधारण गृह स्वामिनी हूं। कोई साहित्यकार या स्थापित लेखिका, कवियत्री या रचनाकार नही और ना ही व्याकरण की कोई पण्डित।
      मेरे लेखन में बहुत सी त्रुटियां होती है, ये मैं जानती हूं, बहुत अच्छी तरह, और हठ धर्मिता भी नही है कि उन्हें न सुधारुं कई बार प्रयास करती हूं पर कहते हैं ना नींव में कमजोरी हो तो ईमारत कमजोर ही रहती है। इसलिए कभी भी किसी साहित्यिक पत्रिका के लिये किसी भी समाचार पत्र या और कहीं भी छपने छपवाने का प्रयास नही किया यहां तक की आपकी पत्रिका अक्षय गौरव का निमंत्रण भी नही स्वीकारा कि आप की उच्च स्तरीय पत्रिका को, और हिंदी साहित्य को मेरी लेखनी से कोई हानि हो।
      समय समय पर गोपेश सर, रविंद्र जी यादव और श्वेता सिन्हा ने मुझे व्यक्तिगत तौर पर मेरी त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाया और कहां कि लिखने में सावधानी बरतूं पर मेरी लापरवाही कहिए या फिर स्वांत सुखायता कि सिर्फ अपने भावों को प्रेसित करने में सुख पाती हूं।
      और जब मैने ब्लॉग पर लिखना शुरू किया और पाँच लिंकों पर भी मेरी कुछ रचनाएं आ गई थी यशोदा जी के स्नेह वश और उस समय तक आप भी पाँच लिंकों पर चर्चा कार थे तो आप को गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए मुझ जैसे अपरिपक्व रचनाकारों का विरोध करना था।रही बात उनकी जो स्नेह वश मुझे सराहना देते हैं, वह उनका अज्ञान नही मेरे प्रति स्नेह है
      क्योंकि मुझे नही लगता कि किसी को भाषा का ज्ञान अच्छा न हो तो उसे कुछ भी लिखना वर्जित है, अपने भावों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता से साहित्य खतरे में पड़ जाए तो फिर आप जैसे महान साहित्यकार क्या कर रहे हैं, साहित्य को बचाने के लिए।
      आपने अभी अभी एक पत्रिका निकाली है "अक्षय गौरव" और उसके लिए आपने बहुत से लोगों को निमंत्रण भी दिया है दो बार आपका निमंत्रण मुझे भी मिला क्यों?
      आप उच्चस्तरीय लेखक हैं, पर सभी विद्यासागर तो नही होते
      रही मेरी अभी तक व्याकरण की अनभिज्ञता तो वो मेरा दोष है उसके लिये प्रशंसक कहीं भी जिम्मेदार नही है।
      मैंने 800 से ज्यादा कविताएँ लिखी है पर छपवाने का कभी नही सोचा क्योंकि उसके लिए प्रूफ रीडिंग की अति - आवश्यकता है ये मैं स्वयं जानती हूं।
      आपने मेरी कविता में त्रुटियोँ की तरफ़ ईशारा कर के मुझे दिशा ज्ञान दिया इसके लिए मैं सदा आपकी आभारी रहूँगी ।

      1 और 2 तो पूर्णतः मान्य है मुझे।

      3 और 4, नुक्ता का मुद्दा हिंदी में काफ़ी समय से छाया हुवा है, वैसे हिंदी में बिंदी का प्रयोग होता है और विदेशी शब्द प्रयोग करते समय नुक्ता का प्रश्न उठता है, तो कुछ विदेशी शब्द अब इतने हमारे हो चुके हैं कि हम हिंदी लिखते समय उनमें नुक्ता लगाएं या न लगाएं हमारी स्व ईच्छा है जैस..

      "केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा जारी मानक हिन्दी वर्तनी के अनुसार उर्दू से आए अरबी-फ़ारसी मूलक वे शब्द जो हिंदी के अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है, हिंदी रूप में ही स्वीकार किए जा सकते हैं। जैसे :– कलम, किला, दाग आदि (क़लम, क़िला, दाग़ नहीं)। पर जहाँ उनका शुद्‍ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो अथवा उच्चारणगत भेद बताना आवश्‍यक हो (जैसे उर्दू कविता को मूल रूप में उद्दृत करते समय) , वहाँ उनके हिंदी में प्रचलित रूपों में यथास्थान नुक्‍ते लगाए जाएँ।"

      फिर भी मुझे आपकी सलाह मान्य है।

      5 दुधारी शब्द...मैने किस शब्द कोष से लिया तो नही बता सकती बस आप देख सकते हैं....
      दुधारी का अर्थ

      [वि.] - दोनों ओर धारवाली। [सं.स्त्री.] एक प्रकार की कटार जिसमें दोनों तरफ़ धार होती है।

      रहा पशु तो पशु दुधारू होते हैं
      दुधारी नही।

      6 मुझे मान्य है।

      लम्बे समयाअवधि की लेखनी में मैंने अभी तक हिंदी व्याकरण का ज्ञान भी ठीक से अर्जित नहीं किया। जो कि हिंदी भाषा की आत्मा है।
      के लिए मैं लज्जित हूं,
      आप क्षमा क्यों मांग रहे हैं, आप जैसे प्रबुद्ध साहित्यकार तो हिन्दी के उत्थान रत हम जैसों का मार्ग दर्शन करते रहें।
      मेरे इस ज़वाब में भी काफी त्रुटियां होगी।
      सविनय।

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  4. शौर्य भाव से ओतप्रोत रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित अप्रतिम रचना.... अत्यन्त सुन्दर कुसुम जी ।

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    1. बहुत सा स्नेह मीना जी आपकी सराहना से रचना मुखरित हुई ।
      सस्नेह ।

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  5. शौर्यगाथा रानी लक्ष्मीबाई की..अतुलनीय शब्दावली कुसुम जी।
    बहुत बढ़िया.

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    1. बहुत सा स्नेह आभार पम्मी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली और मुझे उत्साह ।
      सस्नेह ।

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति सखी

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  7. रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित बहुत ही सुंदर रचना।

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23 -06-2019) को "आप अच्छे हो" (चर्चा अंक- 3375) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  9. आदरणीया क्षमा करिये ! मेरे विचार से आपको लिखते हुए काफी समय हो चला है। केवल आप ही नहीं, यहाँ बहुत से लोग हैं जो हठधर्मिता का प्रदर्शन कर रहे हैं।
    चलिए छोड़िये बातों में क्या रखा है। थोड़ा अपनी मूलभूत ग़लतियों पर नज़र डालें ! अगर नहीं सुधारना चाहतीं तो इसमें मुझे कोई विशेष आपत्ति नहीं। शर्म तो मुझे आने लगी है इन टिप्पणी करने वालों पर, जो साहित्य के नाम पर, एक गन्दा मज़ाक लोगों के साथ करने लगे हैं। ख़ैर ,
    अपनी त्रुटियाँ देखें !
    १. हवा सी ऐसे लिखें ! हवा-सी
    २. काट कर एक साथ लिखें ! यदि अलग़-अलग़ लिखेंगी तो इसका अर्थ निम्न होगा ! जैसे काट = विकल्प , कर = हाथ अतः इसे एक साथ काटकर लिखें !
    ३. आजादी में नुक़्ता लगाएं ! जैसे - आज़ादी
    ४. गजब में नुक़्ता लगायें ! जैसे गज़ब
    ५. यहाँ दुधारी मतलब क्या होगा स्पष्ट करें ! दुधारी पशुओं को कहा जाता है परन्तु आपने तलवार को दुधारी कहा है। अब बताइये कि यह शब्द आपने हिंदी के किस शब्दकोष से लिया है जिसे मैंने नहीं पढ़ा ?
    ६. रूकी नही झुकी नही आपने निरंतर लिखा है। क्या आप यहाँ विराम नहीं लेंगी ! आप स्वयं एक बार पढ़कर देखिये ! रूकी नही ,झुकी नही ( ,)
    अब आप स्वयं मंथन करिये कि, लम्बे समयाअवधि की लेखनी में आपने अभी तक हिंदी व्याकरण का ज्ञान भी ठीक से अर्जित नहीं किया। जो कि हिंदी भाषा की आत्मा है। कटु शब्दों हेतु क्षमा परन्तु सत्य ! सादर

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