व्यवहार संतुलन
मन अनुभव का कच्चा धान
कैसे रांधु मैं अविराम ।
कभी तेज आंच जल जल जाए
कभी उबल कर आग बुझाए
बुझे आंच कच्चा रह जाए
रांधु चावल उजला
बीच कहीं कंकर दिख जाए ।
रे मन पागल बावरे,
धीरज आंच चढा तूं चावल
सद्ज्ञान घृत की कुछ बुंदे डार
हर दाना तेरा खिल खिल जाए
व्यवहार थाली में सजा पुरसाय
जो देखे अचंभित हो जाए
कौर खाने को हाथ बढाए ।।
कुसुम कोठारी।
धीरज आंच चढा तूं चावल
ReplyDeleteसद्ज्ञान घृत की कुछ बुंदे डार
हर दाना तेरा खिल खिल जाए
व्यवहार थाली में सजा पुरसाय
इतने सुन्दर और लौकिक ज्ञान के लिए सर्वप्रथम🙏🙏
(नमन) व्यवहारिक जीवन का सिद्धांत लिए सुन्दर सृजन कुसुम जी ।
आपकी त्वरित और इतनी सरस सुघड़ प्रतिक्रिया के लिये हृदय तल से ढेर सा स्नेह मीना जी।
Deleteरचना के भावों को बहुत सुंदरता से मुखरित किया आपने।
सस्नेह आभार।
वाह!!!कुसुम जी ,अद्भुत !! ,सच ही है धीरज की आँच पर ही पकाना पडता ,तभी दाना-दाना खिलता है ।आपकी कलम को मेरा 🙏🙏
ReplyDeleteवाह शुभा जी सुंदर व्याख्या रचना को गति और समर्थन देती।
Deleteसस्नेह आभार आपका स्नेह बनाये रखें ।
धीरज आंच चढा तूं चावल
ReplyDeleteसद्ज्ञान घृत की कुछ बुंदे डार
हर दाना तेरा खिल खिल जाए
व्यवहार थाली में सजा पुरसाय
जो देखे अचंभित हो जाए
कौर खाने को हाथ बढाए ।। वाह!! बेहतरीन रचना सखी
ढेर सा स्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।
Deleteवाहह्हह दी क्या बात है..बहुत खूब...👍
ReplyDeleteधीरे धीरे रे मना धीरे सबकुछ होय की तर्ज़ पर ही सबकुछ होता है...।
बहुत सा स्नेह श्वेता सुंदर प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसस्नेह आभार ।
ऐसे दुर्लभ विषय पर आप ही लिख सकती हैं प्रिय कुसुम बहन |ये व्यवहारिक ज्ञान अतुलनीय और आपसी सौहार्द और स्नेह के लिए अनमोल है |और चावल को प्रतीक बनाना बहुत ही सार्थक है | सुघड़ गृहिणी का हुनर दिखाते हैं चावल तो धीरज के चावल किसी भी भले मानस की अच्छाई | सस्नेह शुभकामनायें आपके लिए |
ReplyDeleteरेणु बहन आपकी व्याख्यात्मक और सराहनीय प्रतिक्रिया से मेरी साधारण रचना असाधारण बन गई आपका जितना आभार व्यक्त करूं कम होगा।
Deleteवैसे आपने मेरे भावों को सुंदरता से मुखर कर दिया । सच मेरे इस प्रतीकात्मक लेखन को आपने बखूबी भाषित कर दिया।
ढेर सा स्नेह।
आभार नही बस स्नेह और ढेर सा स्नेह ।
बहुत सुंदर और सारगर्भित अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का। रचना की गहराई पर विशेष दृष्टि रचना को सार्थकता दे गई।
Deleteसादर।
बेहतरीन भावों को संजोती रचना।
ReplyDeleteहर दाना तेरा खिल खिल जाए
ReplyDeleteव्यवहार थाली में सजा पुरसाय
जो देखे अचंभित हो जाए
कौर खाने को हाथ बढाए ।।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,आध्यत्म से जोड़ता और जीवन कला सीखता हुआ ,सादर नमस्कार कुसुम जी
अहा बहुत सुंदर भाव ... धीरज की यही तो विशेषता है ... बेहद शानदार
ReplyDeleteआवश्यक सूचना :
ReplyDeleteसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16 -06-2019) को "पिता विधातारूप" (चर्चा अंक- 3368) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
सुन्दर प्रस्तुति
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