एक निष्ठ सूरज
ओ विधाता के
अनुपम खिलौने !
चंचल शिशु से तुम
कभी आसमां
छूने लगते
कभी सिंधु में
जा गोते लगाते
दौड़े फिरते
दिनभर
प्रतिबद्धता
और निष्ठा से
फिर थककर
काली कंबली
ओढकर सो जाते
उठकर प्रभात में
कनक के पहनते
वसन आलोकित
छटा फैलाते
ब्रहमाण्ड से धरा तक
कभी मिहिका का
ओढ आंचल
गोद में माँ के
सो जाते
जैसे कोई
दिव्य कुमार
कभी देते सुकून
कभी झुलसाते
कभी बादलों
की ओट में
गुम हो जाते
ये तो बताओ
पहाड़ी के पीछे
क्यों तुम जाते
नाना स्वांग रचाते
अपनी प्रखर
रश्मियों से
कहो क्या
खोजते रहते
दिन सारे ?
ओ विधाता के
अनुपम ! खिलौने।
कुसुम कोठारी।
ओ विधाता के
अनुपम खिलौने !
चंचल शिशु से तुम
कभी आसमां
छूने लगते
कभी सिंधु में
जा गोते लगाते
दौड़े फिरते
दिनभर
प्रतिबद्धता
और निष्ठा से
फिर थककर
काली कंबली
ओढकर सो जाते
उठकर प्रभात में
कनक के पहनते
वसन आलोकित
छटा फैलाते
ब्रहमाण्ड से धरा तक
कभी मिहिका का
ओढ आंचल
गोद में माँ के
सो जाते
जैसे कोई
दिव्य कुमार
कभी देते सुकून
कभी झुलसाते
कभी बादलों
की ओट में
गुम हो जाते
ये तो बताओ
पहाड़ी के पीछे
क्यों तुम जाते
नाना स्वांग रचाते
अपनी प्रखर
रश्मियों से
कहो क्या
खोजते रहते
दिन सारे ?
ओ विधाता के
अनुपम ! खिलौने।
कुसुम कोठारी।
वाहह्ह्ह... दी...सराहनीय सृजन..लाज़वाब 👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार श्वेता आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सचमुच उत्साह वर्धन होता है।
Deleteढेर सा स्नेह ।
उठकर प्रभात में
ReplyDeleteकनक के पहनते
वसन आलोकित
छटा फैलाते
ब्रहमाण्ड से धरा तक
कभी मिहिका का
ओढ आंचल
गोद में माँ के
सो जाते वाह
बहुत सुंदर वर्णन सूर्य की निष्ठा का बेहतरीन प्रस्तुति सखी
आपकी सराहना से लेखन सार्थक हुवा सखी ।
Deleteसस्नेह आभार ।
बहुत सुंदर सृजन..... ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteनमस्कार प्रिय कामिनी बहन स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसस्नेह आभार ।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-05-2019) को
"माँ कवच की तरह " (चर्चा अंक-3326) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
....
अनीता सैनी
बहुत सा आभार हृदय तल से मेरी रचना को चर्चा मंच पटल पर रखने के लिए।
Deleteसस्नेह।
सुंदर प्रकृति का अन्वेषण करती रचना
ReplyDeleteबहुत सा आभार आपका उत्साह वर्धन के लिये ।
Deleteमेरे ब्लॉग पर सदा स्वागत है।
सादर आभार आदरणीय
ReplyDeleteअहा....शिशु सूरज , बेहतरीन
ReplyDeleteसुन्दर चित्र खींचा है आपने
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
६ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर सृजन। मनमोहक शब्दावली।
ReplyDeleteवाह!! कुसुम जी ,खूबसूरत सृजन ।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteलाजवाब
🙏🙏🙏
वाह लाज़बाब सृजन कुसुम👌👌
ReplyDeleteसूर्यदेव के पूरे दिन का क्रियाकलाप इतनी सुन्दर और मनमोहक शब्दावली में...., लाजवाब और बेहतरीन कुसुम जी 👌👌👌👌
ReplyDeleteविधाता का अनुपम खिलोना ---सूर्य !!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर उत्कृष्ट सृजन
वाह!!!
अहा.... 👌 👌 उत्कृष्ट सृजन
ReplyDeleteअप्रतिम सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर! बेहतरीन पंक्तियाँ....
ReplyDeleteप्रिय कुसुम बहन -- सूर्य भगवान् की समूची दिनचर्या को बहुत ही अध्यात्मिक दृष्टि से देख अनुपम काव्य सृजन किया है आपने | सूर्य भगवान की कर्म निष्ठा से ही संसार ज्योतिर्मान और उर्जामान है | मानवीकरण का सुंदर उदाहरण | सस्नेह --
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