समय चक्र में उदय सुबह हो शाम अस्त भी होता है
सारे जग को रोशन करने वाला भानु, सांझ ढले सोता है
नव आशा का उन्माद लिये फिर नई सुबह आ जाता है
अपनी रक्ताभित लालिमा से विश्व दुल्हन सजाता है
सहस्त्र किरणों की डोर लिये धरती को छूने आता है
फिर शाम के फैले आंचल में थक के सो जाता है।
कुसुम कोठारी।
बेहद सुंदर पंक्तियां सखी
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी आपकी उपस्थिति सदा आनंद देती है।
Deleteसुन्दर पंक्तियां
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका ।
Deleteब्लॉग पर स्वागत है आपका
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार दी ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साह बढाती है।
Deleteसादर सस्नेह।
बहुत सुंदर सृजन कुसुम जी ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिलता है और लिखने का उत्साह।
Deleteसस्नेह।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18 -05-2019) को "पिता की छाया" (चर्चा अंक- 3339) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा अंक में आना हमेशा सुखद अनुभूति है मेरे लिये ।
Deleteसस्नेह ।
बहुत सुन्दर सृजन कुसुम जी !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से सदा मन को प्रसन्नता मिलती है ।
Deleteसस्नेह ।
सुन्दर
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका
Delete
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
19/05/2019 को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी सादर आभार आपका बहुत बहुत सा। मेरी रचना का चयन करने हेतू।
Deleteसादर।
ढेर सा स्नेह बहना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसमय चक्र ही सृष्टि का मूल है कुसुम बहन |
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