Monday, 3 September 2018

तिमिर के पार जिजीविषा

तिमिर के पार जिजीविषा

दूर तिमिर के पार एक
आलोकिक ज्योति पुंज है
एक ऐसा उजाला
जो हर तमस  पर भारी है
अनंत सागर में फसी
नैया हिचकोले खाती है
दूर दूर तक कहीं प्रतीर
नजर नही आते हैं
प्यासा नाविक नीर की
बूंद को तरसता है
घटाऐं घनघोर, पानी अब
बरसने को विकल है
अभी सैकत से अधिक
अम्बू की चाहत है
पानी न मिला तो प्राणों का
अविकल गमन है
प्राण रहे तो किनारे जाने का
युद्ध अनवरत है
लो बरस गई बदरी
सुधा बूंद सी शरीर में दौड़ी है
प्रकाश की और जाने की
अदम्य प्यास जगी  है
हाथों की स्थिलता में
अब ऊर्जा  का संचार है
समझ नही आता
प्यास बड़ी थी या जीवन बड़ा है
तृषा बुझते ही फिर
जीवन के लिये संग्राम शुरू है
आखिर वो तमिस्त्रा के
उस पार कौन सी प्रभा है।

       कुसुम कोठारी।

11 comments:

  1. पानी न मिला तो प्राणों का
    अविकल गमन है
    प्राण रहे तो किनारे जाने का
    युद्ध अनवरत है बहुत सुंदर और सार्थक रचना 👌👌

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  2. बहुत सुन्दर रचना
    जल ही जीवन है को सार्थक करती रचना

    जब तक जीवन है
    प्यास नही बुझती
    प्यास न बुझे तो
    जीवन नैया रुकती
    एक ही सिक्के के
    दो पहलू दिखाये हैं
    खूबसूरत अंदाज में
    बात को समझाये हैं

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  3. अरे वाह्हह दी....गज़ब भावाव्यक्ति है।
    तम चाहे कितना भी गहरा हो
    सूरज पर बादल का पहरा हो
    कोई भोर को रोक नहीं सकता
    चाहे किरणों में रात का चेहरा हो

    गूढ़.अर्थों में सजी जीवन.की रहस्यमयी गुत्थी को सुलझाने का यत्न करती सकारात्मक रचना है दी👌👌

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  4. बहुत बहुत सुंदर

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  5. सकारात्मक सोच के साथ बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
    रचना में जीवन का सम्पूर्ण सार,बहुत ही सुन्दर रचना 👌👌

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १० जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  7. वाह!!बहुत खूब !!कुसुम जी ।

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    1. सस्नेह आभार शुभा जी।

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  8. समझ नही आता
    प्यास बड़ी थी या जीवन बड़ा है
    तृषा बुझते ही फिर
    जीवन के लिये संग्राम शुरू है
    आखिर वो तमिस्त्रा के
    उस पार कौन सी प्रभा है।
    बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना ,सादर नमस्कार

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    1. बहुत बहुत आभार कामिनी जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
      और मुझे उर्जा।
      सस्नेह।

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