Monday, 21 May 2018

यायावर

ना मंजिल ना आशियाना पाया
वो  यायावर सा  भटक गया

तिनका तिनका जोडा कितना
नशेमन इ़खलास का उजड़ गया

वह सुबह का भटका कारवाँ से
अब तलक सभी से बिछड़ गया

सीया एहतियात जो कोर कोर
क्यूं कच्चे धागे सा उधड़ गया।।

         कुसुम कोठारी।

9 comments:

  1. वाह्ह्ह...दी बहुत सुंंदर अ'शाआर है👌👌👌
    आपकी हर रचना अपने में अनूठी होती है कोई शक नहीं दी।😊

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  2. स्नेह आभार श्वेता वैसे आपके आने भर से रचना संवर जाती है ।
    शुभ दिवस ।

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  3. वाह....
    आफ़रीन
    सादर

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    1. सादर आभार सखी दी, ब्लाग पर आपको देख बहुत खुशी हुई, आपको पसंद आई सच रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  4. वाह दीदी जी लाजवाब

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  5. मन के भटकाव को शब्द दिए हैं आपने ... हर शेर गहरी उदासी लिए ...

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  6. बेहतरीन अशआर
    उम्दा अभिव्यक्ति

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