Friday, 20 April 2018

दूर कदमों के निशाँ

राहें ना कारवाँ है
दूर मंजिल के निशाँ है।
ना जाने कैसे होगा जाना
पर इन कदमों को है
मंजिल पाना,
साथ हौसला है बस
न जाने कहां होगा
रात का बसेरा
क्या होगा उस अन्जान
जगह  का फसाना
मन है उहापोह मे फसा
जाना तो होगा ।
बैठ के रहने वालो को
कब मिलते हैं मुकाम
कब तक बैठ किनारों पर
लहरें गिनता रहेगा ।
पार जो जाना है
कश्ती करनी होगी
तूफानों के हवाले
चल उठा कदम
कारवाँ भी बनेगा
मिलेगी मंजिल भी
राहें बनेगी खुद रहनुमा
हम सफर हम कदम।
        कुसुम कोठारी।

13 comments:

  1. बहुत सार्थक रचना।
    थक के रुकनेवालों को मंजिल नहीं मिलती
    बहुत ही प्रेरणादायक लिखा आप ने। सुन्दर !!!

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  2. नीतू जी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा उत्साहित करती है।
    स्नेह आभार सखी।

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  3. वाहह...क्या बात है दी..हमेशा की तरह बहुत सुंदर,प्रेरक और संदेशात्मक रचना दी..👌👌👌

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  4. स्नेह आभार श्वेता

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  5. Wah bahut khoob di .बैठ के रहने वालो को
    कब मिलते हैं मुकाम kya bat kahi hai

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २३ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  7. वाह!!कुसुम जी ,बहुत खूबसूरत रचना ।

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  8. वाह दीदी जी बेहद उम्दा
    सकारात्मक जोश जज़्बा हौसला बढ़ाती लाजवाब सुंदर रचना 👌👌

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  9. बैठ के रहने वालों को
    कब मिलते हैं मुकाम....
    वाह!!!
    राहें बनेगी खुद रहनुमा
    बहुत सुन्दर, प्रेरक एवं लाजवाब रचना....

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  10. कश्ती करनी होगी
    तूफानों के हवाले
    चल उठा कदम
    कारवाँ भी बनेगा
    मिलेगी मंजिल भी
    राहें बनेगी खुद रहनुमा
    हम सफर हम कदम।
    बहुत ही सुंदर प्रेरित करने वाली रचना 🙏

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  11. बेमिसाल अभिव्यक्ति

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  12. बेहतरीन रचना कुसुम जी

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  13. सभी को बहुत सा आभार।

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