Sunday, 1 April 2018

देखो घिर आई घटायें भी

ये वादियां ये नजारे, देखो घिर आई घटायें भी
पहाड़ो की नीलाभ चोटियों पर झुकने लगा आसमां भी।

झील का शांत जल बुला रहा,कुदरत मुस्कान बिखेर रही
ये लुभावनी घूमती घाटियां हरित रंग रंगी धरा भी।

किसी कोने से झांक रही सुनहरी सूर्य किरण
हरी दूब पर इठलाती लजीली धूप की लाली भी ।

छेड़ी राग मधुर, मस्त, सुरभित हवाऔं ने
प्रकृति के रंग रंगा देखो आज मन आंगन भी।
                    कुसुम कोठारी ।

6 comments:

  1. वाह...बहुत खूबसूरत रचना. प्रकृति का मनोहारी वर्णन

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  2. सादर आभार सुधा जी।

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  3. कोठारी जी !! अति सुंदर' मनमोहक रचना.

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  4. प्राकृति के सुंदर रंगों का आगमन मन का आँगन भी महका जाता है ... बहुत सुंदर छंदों से बनी लाजवाब रचना है ...

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    1. सादर आभार सार्थक प्रतिक्रिया के लिये ।

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