Monday, 29 January 2018

हरि आओ ना

आया बसंत मनभावन
हरि आओ ना।

राधा हारी कर पुकार
हिय दहलीज पर बैठे हैं,
निर्मोही नंद कुमार
कालिनी कूल खरी गाये
हरि आओ ना।

फूल फूल डोलत तितलियां
कोयल गाये मधु रागिनीयां
मयूर पंखी भई उतावरी
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।

सतरंगी मौसम सुरभित
पात पात बसंत रंग छाय
गोप गोपियां सुध बिसराय
सुनादो मुरली मधुर धुन आय
हरि आओ ना।

सृष्टि सजी कर श्रृंगार
कदंब डार पतंगम डोराय
धरणी भई मोहनी मन भाय
कुमदनी सेज सजाय।
हरि आओ ना।

    कुसुम कोठारी।

4 comments:

  1. प्यारे भावों से सजी एक मनोहारी रचना कुसुम जी . 👏👏👏

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  2. वाह्ह्ह...दी.बहुत सुंदर रचना👌👌

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