अरविंद सवैया
निशा की ओर
ढलता रवि साँझ हुई अब तो, किरणें पसरी चढ़ अंबर छोर।
हर कोण लगे भर मांग रहा, नव दुल्हन ज्यों मन भाव विभोर।
खग लौट रहे निज नीड़ दिशा, अँधियार भरे अब सर्व अघोर।
तन क्लांत चले निज गेह सभी, श्रम दूर करे अब श्रांन्ति अथोर।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसृजन सार्थक हुआ।
सादर।
वाह!!!
ReplyDeleteकमाल का सृजन
निशा काल का मोहक चित्र उतारा है
लाजवाब 👌👌🙏🙏
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी स्नेह सिक्त मोहक प्रतिक्रिया मेरे लेखन की प्राण वायु है ।
Deleteसस्नेह।
वाह .... बहुत सुन्दर सवैया ...
ReplyDeleteकमाल की लेखनी आपकी ...
हृदय से आभार आपका आदरणीय आपकी प्रबुद्ध लेखनी से सराहना पाकर लेखन समर्थ हुआ।
ReplyDeleteसादर।
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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