निशा के कौतुक
नव पल्लव की सेज सजी है
पसरी उनपर उर्मिल शीतल
विटप शाख का सरस झूलना
प्रभाकीट का मचल रहा दल।।
सुमन सो रहे नयन झुकाए
तारक दल करते मन मोहित
ओपदार बादल के टुकड़े
नभ पर इधर उधर सोहित
सरिता बहती सरगम बजती
मनभावन सी लगती कल-कल।।
विटप शाख का सरस झूलना
प्रभाकीट का मचल रहा दल।।
झींगुर झीं झीं करते भागे
बोले बुलबुल बोल रसीले
वहाँ पपीहा पी तब गाए
कलझाते जब बादल नीले
लो थम-थम के पवमान चले
खड़ी सौम्य रजनी भी निश्चल।।
विटप शाख का सरस झूलना
प्रभाकीट का मचल रहा दल।।
दूर श्रृंग के पीछे छुपकर
चाँद खेलता लुकछिप खेला
चट्टानों के भूरे तन पर
रजत चाँदनी का है मेला
गहरे सागर के पानी में
मची हुई है भारी खलबल।।
विटप शाख का सरस झूलना
प्रभाकीट का मचल रहा दल।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह
ReplyDeleteसुमन सो रहे नयन झुकाए
ReplyDeleteतारक दल करते मन मोहित
ओपदार बादल के टुकड़े
नभ पर इधर उधर सोहित
अहा ! कुसुम जी ! समा बाँध देती हैं आप तो !
शब्दों और भावों की अद्भुत जादूगरी
साधुवाद 🙏🙏🙏🙏